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(४६७)
अहोरात्रि पूर्तिकाल एकस्मिन् मण्डले विधोः । रविस्तु पूरयेत् पूर्णाहोरात्रद्वितयेन तत् ॥४००॥ युग्मं ॥
किसी भी एक सम्पूर्ण मण्डल पूर्ण करने लिए चन्द्रमा को २ ३१/४४२ अहोरात होनी चाहिए । (१/२-(१/२४३१/६१५) इतना मंडल पूर्ण करने के लिए एक अहोरात चाहिए । तो एक सम्पूर्ण मंडल पूर्ण करने को अहो रात्रि होनी चाहिए? वह त्रैराशिक रीति से गिनने में उत्तर मिलेगा।) कोई भी एक सम्पूर्ण मंडल सूर्य, दो अहो रात्रि में पूर्ण करता है । (३६६-४००)
मण्डलार्धमण्डलयोरूक्तैवं काल संमितिः । साधारणा साधारणा मण्डलानि ब्रवीम्यथ ॥४०१॥
इसी तरह से चन्द्रमा के मण्डल तथा अर्धमण्डल के काल का प्रमाण कहा है । अब इसके साधारण तथा असाधारण मंडल विषय में कहते हैं । (४०१)
प्रथमं च तृतीयं च षष्टं सप्तममष्टमम् । दशमैकादशे पंचदशमित्यष्ट मण्डली ॥४०२॥
नक्षत्रैरविरहिता . सदापि तुहिनद्युतेः । . मण्डलेष्वेसु नक्षत्राण्यपि चारं चरन्ति यत् ॥४०३॥
पहला, तीसरा, छठा, सातवां, आठवां, दसवां, ग्यारहवां, और पंद्रहवां इन आठ मंडलों में चन्द्र का कभी भी नक्षत्रों से विरह-वियोग नहीं होता, क्योंकि इन आठ नक्षत्रों में भी, चार गमन करते हैं । (४०२-४०३)
द्वितीयं च चतुर्थं च पंचमं नवमं तथा । त्रीणि च द्वादशादीनि किलैषा सप्तमण्डली ॥४०४॥ ऋक्षैः सदा विरहिता मण्डलेष्वेषु नो भवेत् । कदापि चारऋक्षाणामूषरेषु गवामिव ॥४०५॥
दूसरा, चौथा, पांचवा, नौवा, बारहवां, तेरहवां, और चौदहवां, इन सात मंडलों में चन्द्रमा को नक्षत्रों का विरह ही होता है । जैसे बंजर भूमि में गाय जाती नहीं है, इसी तरह वहां नक्षत्रों की गति नहीं है । (४०४-४०५)
प्रथमं. तृतीयमेकादशं पंचदशं तथा । रविचन्द्रोडुसामान्या मण्डलानां चतुष्टयी ॥४०६॥ एतेषु मण्डलेष्विन्दुः नक्षत्राणि तथा रविः चारं चरन्ति सर्वेऽपि राजमार्गे जना इव ॥४०७॥