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सर्व से आखिर मंडल में दोनों चन्द्रमा की मुहूर्त गति ५१२५६६६०/१३७२५ योजन होती है, और दृष्टि मार्ग प्राप्ति इकतीस हजार आठ सौ इकतीस योजन से है। अर्थात् ३१८३१ योजन से चन्द्र लोगों को दृष्टिगोचर होता है । (३६२-३६५) ___"अत्र सूर्याधिकारोक्तम् तीसाएसट्ठिभाएहिं इत्यधिकं मन्तव्यम् । इति
जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति वृत्तौ ॥" . "इस सम्बन्ध में जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की टीका में कहा है, कि यहां सूर्य के अधिकार में ३०/६० अधिक रूप कहा है । उसे जानना ।" ___"अत्र सर्वाभ्यन्तर सर्व बाह्य चन्द मण्डल योः दृष्टि पथ प्राप्तिता दर्शिता। शेष मण्डलेषु सा चन्द्र प्रज्ञप्ति-वृहत्क्षेत्र समास- जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र वृत्यादि ग्रन्थेषु पूर्वैः क्कापि दर्शितानोप लम्यते । ततो ऽत्रापि नदर्शितेति ज्ञेयम् ॥"
"यहाँ सर्व से अन्दर और सर्व से बाहर के इस तरह दो चन्द्र मंडलं का ही दृष्टिपथ प्राप्ति का प्रमाण बताया है, शेष मंडलों का बताया नहीं है । क्योंकि चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्र, बृहत् क्षेत्र समास, जम्बूद्वीप, प्रज्ञप्ति सूत्र तथा अन्य ग्रन्थों की टीका आदि में पूर्वाचार्यों ने कहीं पर भी वर्णन नहीं किया है।"
प्रतिमण्डलमित्येव मुहूर्तगतिरीरिता । मण्डलार्धमण्डलयोः कालमानमथबुवे ॥३६६॥
इस तरह से चन्द्रमा के प्रत्येक मंडल में मुहूर्त गति के विषय में कहा है। अब उनके मंडल और अर्ध मंडल के कालमान विषय में कहते हैं । (३६६)
नवशत्या विभक्तस्य चंचपंच दशाढ्यया । विभागैर्मण्डलार्धस्य किलैक त्रिंशतोनितम् ॥३६७॥ अर्धमण्डलमे के नाहोरात्रेण समाप्यते । एकैकेन शंशाकेन यत्र कुत्रापि मण्डले ॥३६८॥ युग्मं ॥
३१/६१५ इतना कम, अर्धमण्डल किसी भी मंडल में रहा हुआ, एक चन्द्रमा एक अहो रात्रि में सम्पूर्ण करता है । (३६७-३६८)
द्विचत्वारिंशदधिकैः शनैश्चतुर्भिरे व च । । अहोरात्रस्य भक्तस्य लवैक त्रिंशताधिकौ ॥३६॥