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ताप-प्रकाश क्षेत्र आयेगा । उसके बाद पूर्व और पश्चिम दोनों तरफ प्रकाश क्षेत्र का आधा करने से सूर्य की दृष्टि मार्ग की प्राप्ति समान, चन्द्र के दृष्टि मार्ग की प्राप्ति होती है, अर्थात इतने दूर से चन्द्र को देख सकते हैं । (३६०-३६१) ___"तथा चजम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रम् - तयाणंइयगयस्समणुसस्ससीयाली साहे जो अण सहस्सेहिं दोहियते वढेहिं जोअण सएहिं एग वीसाए सट्टि भाएहिं जो अणस्स चंदे चक्खुफांस हव्वमागच्छइ ॥" . "इस विषय में जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में कहा है कि यहां के रहे लोगों को दोनों चन्द्रमा सैंतालीस हजार दो सौ तिरसठ योजन सम्पूर्ण और इक्कीस साठांश ४७२६३ २१/६० योजन से दृष्टिगोचर होते हैं।" ___जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र ववृत्तौ चः- "यत्तु षष्टी भागीकृयोजन सत्कैक विंशति भागाधिकत्वं तत्तु संप्रदायगम्यम् । अन्यथा चन्द्राधिकारे साधिक द्वाषष्टि मुहूर्त प्रमाण मण्डल पूर्ति कालस्य छेद राशित्वेन भणनात् सूर्याधिकार सत्कषष्टिमुहुर्त प्रमाण मण्डल पूर्तिकालस्यछेद राशित्वेन अनुपपद्यमानत्वात् इति दृश्यते । तदत्र तत्वं बहुश्रुत गम्यम् ॥" . परन्तु इस जम्बू द्वीप प्रज्ञप्तिसूत्र की टीका में कहा है कि 'एक योजन के ६१/६० जो अधिक रूप कहा है, वह संप्रदायगम्य है, नहीं तो चन्द्र के अधिकार में कुछ अधिक बासठ मुहुर्त कहा है, इसमें मंडल पूर्ण करने के काल को छेद राशि रूप कहने से सूर्य के अधिकार के सम्बन्ध में ६० मुहुर्त कहा है, इतने मंडल पूर्तिकाल को छेदराशि रूप प्राप्त नहीं हो सकता । अतः यहां तत्व क्या है, वह बहुश्रुत ज्ञानी जाने ।'
पंचयोजनसहस्राः पंचविंशतियुक् शतम् । योजनस्य तथैकस्य पंचविंशतिसंयुतैः ॥३६२॥ त्रयोदशभिः सहस्त्रैः भक्तस्य सप्तभिः शतैः । भागा नवत्यधिकानि शतान्येकोनसप्ततिः ॥३६३॥ मुहूर्तगतिरे पेन्द्वोः सर्वपर्यन्तमण्डले । अथात्रैव दृष्टिपथप्राप्तिः विविच्यतेऽनयोः ॥३६४॥ एकत्रिंशता योजनसहरष्टभि शतैः । एकत्रिंशः सर्वबाह्ये दृश्यते मण्डले विधू ॥३६५॥