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________________ (४५३) में प्रवेश करता है और प्रकाश करता है और उन दोनों सूर्य में से जिस सूर्य ने पूर्व में (सर्वाभ्यन्तर मंडल में) मेरू पर्वत के उत्तर विभाग को प्रकाशित किया था, वह सूर्य सर्व से बाहर में से पूर्व (प्रथम) के मंडल के उत्तरार्ध में से निकलकर अन्तिम मंडल के दक्षिणार्ध में प्रवेश करके दक्षिणार्ध को प्रकाशित करता है । इस तरह से दोनों सूर्य मिलकर संवत्सर का पूर्वार्ध (एक वर्ष के पहले छ: महीने) समाप्त करता है । (२६६ से २६६) ततस्तौ द्वावपि रवी सौम्यायनादिमक्षणे । अनन्तरं सर्वबाह्यात् द्वितीयं मण्डलं श्रितौ ॥३०॥ उसके बाद ये दोनों सूर्य उत्तरायण के पहले क्षण में सर्व बाह्य मंडल से अनन्तर दूसरे मंडल में आते हैं । (३००) उत्तरार्द्ध योऽदिदीपत् सर्वान्त्यमण्डलाश्रितम् । दीपयेत्सोऽत्रयाम्यार्धमुत्तरार्धं ततः परम् ॥३०१॥ इन दोनों सूर्य में से जिसने अन्तिम मंडल के उत्तरार्ध को प्रकाशित किया था, वह यहां उसके दक्षिणार्ध को प्रकाशित करेगा, और जिसने दक्षिणा को प्रकाशित किया था, वह उत्तरार्ध को प्रकाशित करेगा । (३०१) . एवं पुनःमंडलार्धमेकै कं व्यतिहारतः । एकैकस्मिन्नहोरात्रे आक्रामन्तौ दिवाकरौ ॥३०२॥ प्रत्येकं द्वौ मुहूर्तेकषष्टिभागौ दिने दिने । वर्धयन्तौ क्रमात् प्राप्तौ सर्वाभ्यन्तरमण्डले ॥३०३॥ मण्डलेऽस्मिन् अहोरात्रे गताद्वस्यान्तिमे रवी । यथाऽदिदीपतामर्थे पुनः दीपयतः तथा ॥३०४॥ . .. इति अर्धमण्डल स्थितिः ॥ इस तरह से एक-एक अहोरात्रि में अनुक्रम से एक-एक मंडलार्ध को पार करते वे दोनों सूर्य प्रतिदिन २/६१ मुहूर्त दिनमान में बढ़ाते हुए अनुक्रम से अन्दर के मंडल में प्रवेश करते हैं और गत वर्ष के अन्तिम अहो रात में जैसे वे अर्ध मंडल को प्रकाशित करते थे उसी तरह से इस समय भी अर्ध मंडल को प्रकाशित कर देते हैं । (३०२-३०४) इस तरह सूर्य का अर्ध मंडल स्थिति का स्वरूप समझाया है ।
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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