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(४४४) . अर्थात् इस तरह ४७१७६ पूर्ण योजन और अट्ठावन साठांश ५८/६० इतनी जो संख्या हम लोग द्वितीय मंडलाश्रित निश्चय कर गये हैं, उसमें से यह ८३ २४/६० योजन शोध्य राशि निकाल देने से ४७०६६ पूर्ण योजन और चौंतीस साठांश (४७०६६ ३३/६०, २/१६) आयेगी, इतने क्षेत्र में तीसरा मंडल में सूर्य दिखता है। (२४६-२४७)
एवमुक्त प्रकारेण बहिर्निष्क मतो रवेः । दृक्पथ प्राप्ति विषयात् हीयते प्रति मण्डलम् ॥२४॥ त्र्यशीतिः साधिका क्वापि चतुरशीतिरेव च । साधिकासाक्वापिपंचाशीतिः साप्यधिका क्वचित्॥२४६॥ योजनानां हानिरव भाव्या गणित पंडितैः । .. पूर्वोक्त गणिताम्नायात् यावत्सर्वान्त्य मण्डलम् ॥२५०॥ तत्रचैक त्रिंशतैव सहस्ररष्टभिः शरैः । एक त्रिंशैः त्रिंशता च षष्टयंशैः दृश्यतेरविः ॥२५१॥
इसी तरह युक्त प्रकार से बाहर निकलते सूर्य दृष्टि पथ प्राप्ति के विषय में से मंडल-मंडल में ८३ २४/६० योजन से लेकर कहीं ८४ योजन कहीं इससे अधिक, कहीं ८५ योजन और कहीं ८५ से कुछ अधिक-इतना कम होता है। गणितज्ञों ने पूर्वोक्त गणित आम्नाय (परम्परा) अनुसार से अन्तिम मंडल तक योजनों में कम कर लेना चाहिए । इसी तरह तरह अन्तिम मंडल में इकतीस हजार आठ सौ इक्तीस पूर्णांक एक द्वितीयांश (३१८३१ १/२) योजन से सूर्य दिखाई देता है । (२४८ से २५१)
___ "यद्यपि आन्तर तृतीय मण्डलापेक्षया द्वय शीत्यधिकशत तमेऽस्मिन् मण्डले पूर्वोक्त करण प्रक्रिया शोध्य राशिः पंचाशीतिः योजनानि एकादश षश्टिभागा एकस्य षष्टि भागस्य सत्काः षडेक षष्टि भागा (८५११/६०) एवं रूपो. जायते तथापि पूर्वोक्ताः षट्त्रिंशद् भाग भागाः कलान्यूना अपि व्यवहारतः पूर्णाः विवक्षिताः । तिस्मंश्च कलान्यूनत्वे अन्त्यमण्डले एकत्र पिण्डिते सति अष्ट षष्टिः एक षष्टि भागाः त्रुटयन्ति तदपसारेण पंचाशीतिः योजनानि नव षष्टि भागाः योजनस्य एकस्य षष्टि भागस्य सत्का षष्टिः एक षष्टि भागा जायन्ते ८५६/६०+१/६०४६०/६१ । अयं च शोध्य राशिः सर्व