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(xlvii)
सं०
४६०
४००
क्र० विषय
श्लोक | क्र० विषय श्लोक सं० । सं०
सं० ७०८ मंडल की गति के विषय में ३४३/७३० ग्रहण के बारे में लोक प्रमाण ४४८ ७०६ उनके चार अनुयोग द्वारों के नाम ३४७/७३१ राहु के नौ नाम ।
४५५ ७१० पहले द्वार का प्ररूपण ३४६/७३२ नक्षत्र व महीने के अहोरात्र ४५८ ७११ चन्द्रमा के मंडलों की परिधि ३४६/७३३ उनकी समझ-बूझ ७१२ दूसरे द्वार का वर्णन ३५६/७३४ प्रथम उत्तरायण कैसे? .. ४६५ ७१३ एक मंडल के पूर्ण करने का ३६०/७३५ बाद में दक्षिणायण कैसे? ४७४ समय
|७३६ युग के दिवस प्रमाण .. .४७५ ७१४ उस विषय में प्रश्नोत्तर ३६५/७३७ युग के आरंभ पीछे अमुक : ४७५ ७१५ इस विषय में जवाब तथा करण ३६६ दिन कैसे चन्द्रायण है । ७१६ चन्द्रमा का दृष्टिगोचरपन योजन में३८७/७३८ उसको जानने का करण, . ४७६-४६० ७१७ तीसरे द्वार का वर्णन ३६६, उसके द्रष्टान्त, चन्द्रमा नाम की. ७१८ चौथे द्वार का वर्णन
सार्थकता ७१६ चन्द्रमा से नक्षत्रों में अविरह ४०१/७३६ नक्षत्रों के विषय में
- उन मंडलों का क्या नम्बर ७४० उनके १५ द्वारों के नाम ४६४ ७२० चन्द्रमा से नक्षत्रों में विरह से उन ४०३/७४१ (१) नक्षत्र मंडलों की संख्या - ४६६ मंडलों के क्या नम्बर
का प्रारूपण ७२१ किन मंडलों में सूर्य-चन्द्र उन ४०५/७४२ (२) अभिजित नक्षत्र के बारे में ५०५
नक्षत्रों से सामान्य रहते है . | शंका समाधान ७२२ किन चन्द्र मंडलों में सूर्य का ४०७/७४३ (३) २८ नक्षत्रों के मंडलों की ५०८
गमनागमन नहीं है . | संख्या ७२३ चन्द्रमा की वृद्धि-हानि का ४११/७४४ (४) नक्षत्रों के क्षेत्र के विषय में ५०६ प्रतिभाष के विषय में
|७४५ (५) नक्षत्रों के विमानों का . ५१४ ७२४ राहु के विमान से चन्द्रमा का ४११/ परस्पर अन्तर .
हास होता है, इस विषय में ७४६ (६) मंडल की मेरू प्रति अबाधा५१६ ७२५ आधे योजन वाला राहु चन्द्रमा ४३२ ७४७ (७) मंडल के विष्कंभादि ५१८ को किस तरह से ढक लेता है? |७४८ (८) मुहुर्त गति
५१६ ७२६ इसका समाधान
४३४/७४६ (६) चन्द्रामंडलावेश ५४६ ७२७ ग्रहण के विषय में पाठ ७५० (१०) दिग योग
५५१ ७२८ ग्रहण के बारे में
४४४/७५१ मंडल के अर्द्ध भाग में गमन ५५२ ७२६ चन्द्र व सूर्य का ग्रहण होने का ४४६) करते नक्षत्रों के नाम समय
|७५२ बाह्य-अभ्यन्तर मंडलों का गमन ५५६