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________________ (४३२) सर्वबाहामण्डलं तु प्राप्तयोरूष्ण रोचिषोः । तापान्धकारयोः प्राग्वत् संस्थानादि निरूपणम् ॥१७१॥ . किन्त्वब्धिदिशि विष्कम्भे विशेषोऽस्ति भवेत्स च । बाह्य मण्डल परिधेः दशांशे द्विगुणीकृते ॥१७२॥ स्यु त्रिषष्टिः सहस्राणि सत्रिषष्टिश्च षट्शती । तद्दशांशे त्रिगुणिते ध्वान्तव्यासोऽप्यसौ तदा ॥१७३॥ ... सहस्राः पंचनवतिश्चत्वार्येव शतानि च । चतुर्नवतियुक्तानि त्रिंशदशांश्च पष्टिजाः ॥१७४॥ विशेषकं. ॥ इस तरह कर्क संक्रान्ति में सूर्य के आतप क्षेत्र का और अंधकार क्षेत्र का स्वरूप कहा है । जब दोनों सूर्य सब प्रकार से बाहर के मंडल में आता है, तब ताप और अंधकार के आकार आदि का स्वरूप तो पूर्व के समान जान लेना, केवल समुद्र की ओर की चौड़ाई में फेर है, यह चौड़ाई सब बाह्य मंडल के परिधि का दों दशांश समान है, अर्थात् तिरसठ हजार छः सौ तिरसठ (६३६६३) योजन है । उस समय की परिधि के तीन दशांश के जितना है अर्थात् पचानवे हजार चार सौ चौरानवे पूर्णांक एक द्वितीयांश (६५४६४ १/२) योजन अंधकार का व्याप्त होता है। (१७१-१७४) बाह्यान्तर्मण्डलस्थार्कतापः क्षेत्रानुसारतः । वृद्धि हानि व्यतीहारः प्रकाशतमसोर्भवेत् ॥१७॥ सामीप्यात् दीप्रतेजस्त्वात् सर्वान्तर्मडलेऽर्कयोः। . दिनातप क्षेत्रवृद्धि धर्मस्तीवस्तमोऽल्पता ॥१७६॥ मन्दतेजस्तया दूरतया च बाह्य मण्डले । निशातमः क्षेत्रवृद्धिस्तापक्षेत्राल्पता हिमम् ॥१७७।। बाहर और अन्दर के मंडल में रहे सूर्य के ताप, क्षेत्र, के अनुसार, प्रकाश और अंधकार की वृद्धि और हानि होती है। सब प्रकार से अन्दर के मंडल में आता है तब दोनों सूर्य नजदीक और तीव्र तेज वाले होने से दिन के प्रमाण तथा आताप क्षेत्र की वृद्धि होती है । इससे तीव्र ताप (गरमी) लगती है, और अन्धकार अल्प रहता है । दोनों सूर्य सर्वप्रकार से बाह्य मंडल में होते हैं तब उनके दूर और मंद तेजवाला होने से रात्रि और अंधकार के क्षेत्र की वृद्धि होती है । ताप क्षेत्र स्वल्प होता है और हिम पड़ता है । (१७५-१७७)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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