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________________ (४३०) . अत्रोच्यते - संभवत्येव किन्त्वत्र करणेनैव संवदन् । चतुर्नवतिसहस्रादिक एवमतो बुधैः ॥१५७॥ व्यक्तिस्तु करणस्यास्य मुहूर्तगति चिन्तया । कार्या दृग्गोचरस्वेव साम्या दृक्पथताषयो ॥१८॥ तथा :- अत्रोदयास्तान्तरं प्रकाशक्षेत्रं ताप क्षेत्र मित्येकार्थाः। । - यहां उत्तर देते है - संभव ही है, परन्तु विद्वानों ने यहां 'करणयुक्ति' वे साथ में वास्तविक चौड़ाई की गिनती की है, और यह चौड़ाई चौरानवे हजार पार सौ छब्बीस योजन पूर्णांक और बयालीस साठांश योजन है । तथा इस करणयुक्ति की युक्ति से मुहूर्त गति का विचार करना, क्योंकि उसका जैसे दृग्गोचर के साए में साम्य है वैसा ही दृक्पथ और ताप क्षेत्र के साथ में साम्य है । (१५७-१५८ कहा है कि १- उदय और अस्त के बीच का अन्तर, २- प्रकाश क्षेत्र और ताप क्षेत्र यह तीनों एकार्थवाची शब्द हैं। विष्कम्भरस्त्वेष तापस्य द्विविधे ऽप्यनवस्थितः । याम्येऽयने हीयमानः सौम्ये वृद्धिमवाप्नुयात् ॥१६॥ मुहूर्तेकषष्टिभागद्वयगम्यं तु यद्भवेत् । क्षेत्रं तावन्मितां बृद्धिः हानिश्च प्रति मण्डलम् ॥१६०॥ तथा च मण्डलैः सार्धत्रिंशतैकैक़भानुमान् । क्षेत्रं गम्यं मुहूर्तेन वर्धयेद्वा क्षयं नयेत् ॥१६१॥ मण्डलानां सत्र्यशीतिशते नैवमनुक्रमात् । वर्धितं क्षपितं ताभ्यां सौम्ययाम्यायनान्तयोः ॥१६२॥ मुहूर्तेः षड्भिराक्रम्यं क्षेत्रं स्यादेष एव च । बाह्यान्तर मण्डलाभ्यां दशांशो बृद्धि हानिभाक् ॥१६३॥ युग्मं ॥ ताप क्षेत्र की दोनों प्रकार की यह चौड़ाई अनवस्थित - अनिश्चित है क्योंकि दक्षिणायन में वह घटता है और उत्तरायण में बढ़ता है, एक मुहूर्त के एक साठांश में क्षेत्र पार हो, उतने उत्तरायण में वृद्धि होती है, और दक्षिणायन में हानि प्रत्येक मंडल में होती है, इससे सैंतीस मंडल में प्रत्येक सूर्य एक मुहूर्त में गमन कर सकता है । इतना क्षेत्र बढ़ घट सकता है । और इससे अनुक्रम से एक सौ तिरासी मंडल में घूमकर उत्तरायण अथवा दक्षिणायन के आखिर तक दोनों सूर्यों ने इतना क्षेत्र बढ़ाया है अथवा घटाया है । वह छः मुहूर्त में गमन कर सकता है, और इतना ही
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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