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________________ (४२६) मेरु पर्वत से पूर्व पश्चिम में भी सूर्य के ताप क्षेत्र की लम्बाई उतनी ही समझनी चाहिए। (१४६) सर्वेषु मण्डलेष्वेष चरतोः भानुमालिनोः । अवस्थितः सदा ताप क्षेत्रायामः प्रकीर्तितः ॥१५०॥ सभी ही मंडलों में विचरते दोनों सूर्यों के ताप क्षेत्र की लम्बाई हमेशा एक समान होती है । (१५०) विष्कम्भस्तु मेरूपावें तस्यार्धवलयाकृतेः । स्यात् मेरू परिधेः भागे दशमे त्रिगुणीकृते ॥१५१॥ तथा च - सहस्रा नव षडशीत्यधिका च चतुः शती। .... योजनानां दशछिन्नयोजनस्य लवा नव ॥१५२॥ विष्कम्भोऽम्भोधिपार्वे तु ताप क्षेत्रस्य निश्चितः । अन्तमण्डल परिधेदंशांशे त्रिगुणी कृते ॥१५३॥ सचायम् :- योजनानां सहस्राणि चतुर्नवतिरेव च । __षड्विशा पंचशत्यंशा षष्टिजा द्वयब्धिसंमिताः ॥१५४॥ अब इन सूर्यों के ताप क्षेत्र की चौड़ाई के विषय में कहा जाता है - अर्ध विलयाकार इस ताप क्षेत्र की मेरु पर्वत के पास में चौड़ाई, मेरू परिधि के तीन दशांश सद्दशं है । अर्थात् नौ हजार चार सौ छियासी पूर्णांक नौ दशांश ६४८६६/१० योजन है । परन्तु समुद्र के पास में यह चौड़ाई अन्तर्मण्डल की परिधि के तीन दशांश समान है । अर्थात् चौरानवे हजार पांच सौ छब्बीस योजन और बयालीस साठांश ६४५२६ ४२/६० योजन है । (१५१ से १५४) । नन्वेवंमब्थेः षङ्भागं यावद्वयाप्तिमुपेयुषः । तापक्षेत्रस्य विष्कम्भः संभवेत् नाधिकः कथम् ॥१५५॥ तथाहि - पूर्वोक्त ताप क्षेत्रस्य प्रान्ते ऽब्धौ परिधिस्तु यः। - तद्द शांशत्रयस मितो विष्कम्भः संभवेत् न किम् ॥१५६॥ यहां प्रश्न करते है कि कईयों के मतानुसार सूर्यातप क्षेत्र लवण समुद्र के छठे विभाग तक लम्बा है, तो इसकी चौड़ाई भी पूर्व में कही है, इससे अधिक क्यों नहीं होती है ? पूर्वोक्त ताप क्षेत्र के प्रान्त-किनारे समुद्र का जो परिधि है, उसके तीन दशांश सद्दश चौड़ाई क्यों नहीं संभव है ? (१५५-१५६)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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