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(४२८) सहस्राः पंचचत्वारिंशद्योजनानि तत्र च । जम्बू द्वीपे शेषमब्यौ द्वयोर्योगे यथोदितम् ॥१४३॥
सर्व अभ्यन्तर मंडल में रहे दोनों सूर्यों के आतप की आकृति ऊंचे वाले ताल पुष्प की आकृति समान कही है। वह मेरू पर्वत की ओर अर्धवलयाकार है
और समुद्र के तरफ गाड़ी की ऊंघ के मूल भाग के आकार से है । मेरु पर्वत के तरफ संकोच प्राप्त करता और समुद्र तरफ विस्तार वाला है। दोनों आकृति उत्तर-दक्षिण में लम्बी है और वे मेरु के किनारे पर जाने से अठहत्तर हजार तीन सौ तैंतीस पूर्णांक और तृतीयांश योजन सद्दश है, इसमें से पैंतालीस हजार योजनं जितना जम्बूद्वीप में और शेष तैंतीस हजार तीन सौ तैंतीस योजन जितना समुद्र में है । (१३६-१४३)
मेरूणायन्मते सूर्यप्रकाशः प्रतिहन्यते । । . तेषा मते मानमिदं तापक्षेत्रायतेः ध्रुवम ॥१४४॥
सूर्य के आतप क्षेत्र की लम्बाई जिसके मतानुसार मेरू पर्वत से सूर्य का प्रकाश प्रतिघात करता है, उसके.मत में है । (१४४) .
येषां मते मेरूणार्क प्रकाशो नाभिहन्यते । किन्तु मेरूगुहादीनामप्यन्तः प्रथते महः ॥१४५।। तेषां मते मन्दरार्धादारभ्य लवणोदधेः । षड्भागं यावदायामः तापक्षेत्रस्य निश्चितः ॥१४६॥ तदा च - योजनानां सहस्राणि पंच राशौ पुरातने।
क्षिप्यन्ते मन्दरार्धस्य ततोमानमिदंभवेत्॥१४७॥ योजनानां सहस्राणि त्र्यशीतिः त्रिशती तथा।
त्रयस्त्रिंशत्समधिका तृतीयोंशश्च यौजनः ॥१४८॥
जिसके मत में मेरू से सूर्य का प्रकाश प्रतिघात नहीं होता, परन्तु मेरू की गुफा आदि के अन्दर भी फैल जाता है, उनके मतानुसार तो मेरू के अर्धभाग से लेकर लवण समुद्र के छठे भाग तक सूर्य का ताप क्षेत्र लम्बाई वाला है अतः उनके मतानुसार पूर्वोक्त मान में मेरू पर्वत के आधे विस्तार के पांच हजार योजन मिलाने से लम्बाई आती है । अर्थात् वह तिरासी हजार तीन सौ तैंतीस पूर्णांक एक तृतीयांश योजन उन लोगों के मतानुसार कहलाता है । (१४५-१४८)
सुपर्व पर्वतादेवं पूर्वपश्चिमयोरपि । तापक्षेत्रस्य प्रत्येकं आयामो ज्ञायतामियान् ॥१४६॥