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निशां चाह्नां मध्यमानामप्येवं स्तो यथोचितम् । विश्लेष शेषार्द्धशेपे याते चादिपरिक्षयौ ॥१२३॥
मध्यम रात्रि और मध्यमदिन का भी आदि और अन्त, मुहूर्तों का बाद करने पर शेष मुहूर्त रहे इसका आधा प्रमाण पूर्ण होने के बाद होता है । (१२३) ___ "इति कृता वर्ष मध्ये दिन रात्रि प्रमाण प्ररूपणा ॥"
'इस तरह से वर्ष के सब अहो रात के प्रमाण के कथन रूप दूसरे अनुयोग द्वार का वर्णन सम्पूर्ण हुआ ।'
मण्डलस्याभ्यन्तरस्य दशात्र परिधेलवाः । कल्प्याः तत्रोद्योतयेत्तांस्त्रीनेको अर्को दिने गुरौ ॥१२४॥ जींश्च तत्संमुखानन्यः षट्स्वंशेषु दिनं ततः । मध्ये तयोः लवौ द्वौ द्वौ रजनीति लवा दश ॥१२५॥
अब चार कथन में से तीसरे द्वार के विषय में कहते हैं - अब अभ्यन्तर मंडल के घेराव के यदि हम दस विभाग की कल्पना करें, तो इन दस में से तीन विभाग को बड़े दिन में एक सूर्य प्रकाशित करता है, और इसके सन्मुख के तीन विभाग को दूसरा सूर्य प्रकाशित करता है । इससे ये छः विभाग में दिन होता है, शेष बीच में से दो-दो विभाग रहे, उसमें रात होती है, इस तरह दस विभाग समझना । (१२४-१२५.) .
जघन्येऽहनि च द्वौ द्वौ भागौ दीपयतो रवी । द्दिनं चतुर्षु भागेषु निशा षट्सु लवेष्वतः ॥१२६॥
जब छोटा दिन होता है, तब दोनों सूर्य दो-दो विभाग को प्रकाशित करते हैं। इससे चार विभाग में दिन होता है, और छः विभाग में रात्रि होती है । (१२६)
प्रकाश क्षेत्रतश्चैव दशांशौ दक्षिणायने । - हीयेते क्रमतस्तौ च वढे ते उत्तरायणे ॥१२७॥
इस प्रकार क्षेत्र से बताये गये दशांश में प्रकाश होता है, और दशांश अनुक्रम से दक्षिणायन में घटता जाता है, और उत्तराण में बढ़ता जाता है । (३/१० से घटता है, और ३/१० से बढ़ते है) ऐसा समझना । (१२७)