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स्यात् भरतैरवतयोः यन्निशाधं क्षण त्रयम् । भवेद्विदेहयो रात्रेः तदेवान्त्यं क्षण त्रयम् ॥१७॥
दोनों विदेह में रात्रि के पहले तीन मुहूर्त के समय भरत और ऐरवत में अन्तिम तीन मुहूर्त होते हैं, तथा भरत और ऐरवत में रात्रि के जो पहले तीन मुहूर्त होते हैं, वही दोनों विदेह में रात्रि के अन्तिम तीन मुहूर्त होते हैं । (११६-११७)
इह च प्राग्विदेहादि क्षेत्राव्हानोपलक्षिताः । पूर्वादिक्षेत्रदिग्मध्यभागा ज्ञेया विवेकिभिः ॥११८॥ .. तेष्विदं कालनैयत्यं ज्ञेयमन्यत्रतुस्फुटम् । भाव्यमस्यानुसारेणकोर्दयास्तविभावनात् ॥११६॥
यहां पूर्व महाविदेह क्षेत्र और पश्चिम महाविदेह क्षेत्र नाम कहे है इसका विवेकीजन ने पूर्व और पश्चिम क्षेत्र दिशा के मध्य भाग का अर्थ लेना चाहिए । इस भाग में ऐसे काल का नियम समझना । अन्यत्र तो इसके अनुसार से सूर्योदय और सूर्यास्त के भाव से स्पष्ट रूप में जान लेना चाहिए । (११८-११६) .
एवं च - अपाच्यु दीच्योः प्रत्यूषात् मुहूर्त्तत्रितये गते । लघोर्निशायाः प्रारम्भःस्यात् पूर्वापरयोः दिशोः ॥१२०॥ अपराह्नत्रिमुहूत्तयाँ शेषायां चानयोः दिशोः । प्रत्यक् प्राक् चनिशान्तः स्यादेवं सर्वत्र भाव्यताम् ॥१२१॥
और इसी प्रकार दक्षिण और उत्तर दिशा में प्रभात काल होता है, उसके बाद तीन मुहूर्त पूर्व और पश्चिम दिशा में जघन्य रात का प्रारम्भ होता है । इन दोनों दिशाओं में दिन के दोपहर के बाद तीन मूहूर्त शेष रहता है, तब पश्चिम और पूर्व दिशा में प्रभातकाल होता है । इस तरह सर्वत्र समझ लेना चाहिए । (१२०-१२१)
इदं गुरुदिने गुळ रात्रो त्वस्याः क्षणत्रये । । गते शेषे च कल्याहःप्रान्तावुक्त दिशोः क्रमात् ॥१३२॥
यह बात कही है, कि यह उत्कृष्ट दिनमान हो, उस समय का समझ लेना । रात्रि उत्कृष्ट हो तब तो इसके तीन मुहूर्त व्यतीत होने के बाद शेष मुहूर्त में उक्त दिशाओं में क्रमशः दिन पूर्ण होता है । (१२२)