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तर्हि रात्रेादशानां मुहूत्तानां व्यतिक्रमे । स्यात् क्षेत्रे तत्र कः काल इति चेदुच्यते श्रृणु ॥१०५॥
यहां प्रश्न करते हैं कि - जिस समय भरत क्षेत्र में अट्ठारह मुहूर्त का दिन होता है, उस समय महाविदेह क्षेत्र में रात्रि बारह मुहूर्त की छोटी में छोटी होती है। तो फिर उस रात्रि के बारह मुहुर्त व्यतिक्रम (सिलसिले) में तब उस क्षेत्र में कौन काल आता है ? (१०४-१०५)
धुरात्रिमानविश्लेषे शेषार्धार्धं भवेत् द्वयेः । . सामान्य क्षेत्रयो रात्रि दिन पूर्वापरांशयोः ॥१०६॥
उत्तर - दिनमान और रात्रिमान का समय निकालने पर जो शेष रहे उसका आधा-आधा दोनों क्षेत्र में रात्रि-दिन के पूर्व और पश्चिमांश में सामान्य रूप से रहता है । (१०६)
तद्यथाक्षणेभ्यो ऽष्टादशभ्यो द्वादशापकर्षणो स्थिताः । षट् तदर्थे त्रयं साधारणं ज्येष्ठदिनोषयोः ॥१०७॥
वह इस तरह-अठारह मुहूर्त में से बारह निकाल देने में शेष छः मुहूर्त रहते हैं । इसका आधा तीन होता है वह उत्कृष्ट दिन और रात्रि में सामान्य रूप में रहता हैं । (१०७) एवं च - अष्टादश मुहुर्तात्मा यदोत्कृष्ट दिनस्तदा ।
पश्चात्रिक्षणशेषेऽहि भवेत् भानूदयोऽग्रतः ॥१०८॥ और वह इस प्रकार से जब अठारह मुहूर्त का उत्कृष्ट दिन होता है, तब पिछले भाग में तीन मुहूर्त दिन शेष रहता है । तब अगले विभाग में सूर्य का उदय होता है । (१०८)
तथाहि - मुहूर्तत्रयशेषह्नि भरतैरवताख्ययोः । ___ . भवेदभ्युदयो भानोः पूर्वापरविदेहयोः ॥१०॥ दिने त्रिक्षण शेषे च पूर्वापरविदेहयोः ।। स्यात् भरतैरवतयोः तरणेरूदयः खलु ॥११०॥ .
वह इस प्रकार भरत और ऐरवत क्षेत्र में जब तीन मुहुर्त दिन शेष रहता है, तब पूर्व और पश्चिम महाविदेह क्षेत्र में सूर्योदय होता है । तथा पूर्व और पश्चिम