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(४२१)
सर्वोत्कृष्टं दिनमानं पूर्व पश्चिमयोर्यदा । रात्रिः सर्वजघन्या स्यात् दक्षिणोत्तरयोस्तदा ॥१०१॥
दक्षिण और उत्तर दिशा में जब सर्वोत्कृष्ट दिनमान होता है, तब पूर्व और पश्चिम दिशा में सर्व जघन्य रात्रि होती है । और पूर्व तथा पश्चिम में जब सर्वोत्कृष्ट दिनमान होता है, तब दक्षिण तथा उत्तर दिशा में सर्व से जघन्य रात्रि होती है । (१००-१०१)
किं च क्षेत्रेषु सर्वेषु सम मानमहर्निशोः । किन्त्वेतयोरवस्थाने यथोक्तः स्याद्विपर्ययः ॥१०२॥
यद्यपि सर्व क्षेत्रों में दिन रात का मान समान होता है, फिर भी अवस्थान में पूर्व कहे अनुसार फेरफार होता है । (१०२)
क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्नहोरात्रो भवेद् ध्रुवम् । त्रिंशन्मुहूर्त प्रमाणो न तु न्यूनाधिकः क्वचित् ॥१०३॥
सर्व क्षेत्र में और सर्व काल में अहो रात्रि तो तीस मुहूर्त का ही होता है । कभी भी और कहीं पर भी ज्यादा नहीं होती है । (१०३) ... लोके तु :
भवेत् पैत्रं त्वहोरात्रं मासेनाब्देन दैवतम् । - दैवे युग सहस्र द्वे ब्राहम्यं कल्पौ तु तौ नृणाम् ॥१॥ ... लोक रूढि इस तरह से है - पितृ का अहो रात एक महीने का होता है, देवों का अहोरात एक वर्ष का होता है और ब्रह्मा का अहोरात्रि देव के दो हजार वर्ष युग का होता है । यह ब्रह्मा की अहोरात्रि में मनुष्य के दो कल्प कहलाते हैं । (१)
"एवमहो रात्रे विशेष वदन्ति । अत एव दक्षिणायनं देवानां रात्रिः उत्तरायणं तेषां दिनम् इति शुभकार्य तत्र विहितमति मन्यन्ते ॥"
- 'इस तरह अहोरात्रि के सम्बन्ध में फेर फार है । इस प्रकार से दक्षिणायन में उन देवों की रात्रि कहलाती है और उत्तरायण में उनका दिन कहलाता है । इससे शुभकार्य उत्तरायण में करना चाहिए । ऐसी लोक मान्यता है।'
ननु चाष्टादश मुहूर्तात्माहर्भरते यदि । स्यात्तदा च विदेहेषु रात्रिः सर्व लघीयसी ॥१०॥