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________________ (४२०) अत्युत्कृष्टं चापकृष्टं प्रत्यद्वमेकमेव हि । दिनं रात्रिस्तथैवैका सर्वोत्कर्षायकर्षमाक् ॥६६॥ इस तरह प्रत्येक वर्ष में लम्बे में लम्बा एक ही दिन आता है, और छोटे में छोटा भी एक ही दिन आता है । रात भी इसी तरह लम्बी में लम्बी एक ही तथा छोटी में छोटी भी एक ही आती है । (६६) रात्रिर्याम्यायनान्तेऽतिगुर्वी लघुतम दिनम् । ... दिनसौम्यायनान्तेऽतिगुरुः निशा लधीयसी ॥६७॥ .' दक्षिणायन के आखिर में रात्रि सब से बड़ी और दिन सबसे छोटा होता है, जब उत्तरायण के आखिर दिन सबसे बड़ा होता है, और रात सब से छोटी होती है। (६७) "तथा च सिद्धान्तः ॥ इह खलु तस्सेयं आइच्चसंवच्छ रस्ससई अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ ।सइं अट्ठारसमुहुत्ताराइ भवइ ।सइंदुवाल समुहुत्तो दिवसो भवइ ॥ सई दुवाल समुहुत्तो राइ भवइ ॥" . 'इस विषय में सिद्धान्त में भी उल्लेख मिलते हैं वह इस प्रकार सूर्य संवत्सर का एक ही दिन अट्ठारह मुहूर्त का होता है, और रात्रि भी एक ही बारह मुहूर्त की होती है । दिन भी एक ही बारह मुहूर्त का होता है, और रात्रि भी एक ही अठारह मुहूर्त की होती है।' जम्बू द्वीपे यदा मेरोः दक्षिणोत्तरयोः दिनम् । चकितेव सदा रात्रिः स्यात् पूर्वापरयोः दिशोः ॥६॥ जम्बू द्वीप में जब मेरू पर्वत से दक्षिण और उत्तर में दिन होता है, तब रात्रि मानो उससे भयभीत बनकर जाती हो, इस तरह वह उसके पूर्व और पश्चिम दिशा में होती है । (६८) जम्बू द्वीपे यदा मेरोदक्षिणोत्तरयोर्निशा । तदास्याद् वासरो मेरोः पूर्व पश्चिमयोर्दिशोः ॥६६॥ जम्बूद्वीप में जब मेरू पर्वत के उत्तर और दक्षिण दिशा में रात्रि हो, तब मेरु पर्वत के पूर्व-पश्चिम दिशा में दिन होता है । (६६) सर्वोत्कृष्टं दिनमानं दक्षिणोत्तरयोर्यदा । रात्रिः सर्वजघन्या स्यात् पूर्व पश्चिमयोस्तदा ॥१०॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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