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________________ (४१६) राशि म० ध० कृ० वृ० मी० मे० तु० क० वृष मि० सिं० कर्क घड़ी • २६ २६ २६ २८ २८ ३० ३० ३१ ३१ ३३ ३३ ३३ पल १२ ४८ '४८ १४ १४ ० ० ४६ ४६ १२ १२ ४८ ततश्च :एकार्कपक्षद्विशरास्त्रिदन्ताः त्रिदन्तपक्षद्विशरा:कुसूर्याः । मृगादि षट् केऽहनि वृद्धि रेवम् कर्कादिषट् केऽपचितिः पलाढया ॥६०॥ इससे मकर संक्रान्ति से छः संक्रान्ति तक अनुक्रम से १२१, ५२२, ३२३, ३२३, ५२२, १२१ पल की वृद्धि होती है और कर्क संक्रान्ति से धन संक्रान्ति तक छः संक्रान्ति में उसी अनुक्रम से उतने पल दिन में घटते हैं । (६०) .. यह सारी बात उसके असल स्थान देखे बिना निश्चय नहीं हो सकता है । प्रविशन्तौ सर्व बाह्य मण्डलात्तरणी यदा । संक्रम्य चरतः सर्व बाह्यार्वाचीन मण्डले ॥६१॥ तदा द्वाभ्यां मुहूत्तैकषष्टयंशाभ्यां विवर्द्धते । दिवसः क्षीयते रात्रि स्ताभ्यामेव यथोत्तरम् ॥६२॥ युग्मं ॥ . सर्व से बाहर के मंडल में से संक्रमण करके दोनों सूर्य जब बाहर से अन्दर के पहले मंडल में प्रवेश करता है तब दिन २/६१ मुहूर्त लम्बा होता है । और रात्रि उतनी छोटी होती है । (६१-६२) क्रमांदेवं यदा प्राप्तौ सर्वाभ्यन्तर मण्डले । . . त्र्यशीतियुक्शततमे बाह्यार्वाचीन मण्डलात् ॥६३॥ तदोत्कृष्टं दिनमानमष्टादश मुहूर्तकम् । .... रात्रिः सर्वजघन्याः तु स्यात् द्वादश मुहूर्तिका ॥६४॥ युग्मं ॥ एतदेवोदगयनस्यान्त्यं दिनमुदीरितम् । पूर्णे चास्मिन्नहोरात्रे संपूर्णः सूर्यवत्सरः ॥६५॥ . इस तरह वे अनुक्रम से जब सूर्य से अन्दर के मंडप में अर्थात् बाहर के अर्वाचीन मंडल से एक सौ तिरासीवें मंडल के अन्दर प्रवेश करता है तब दिनमान उत्कृष्ट अर्थात् अठारह मुर्हत्त का होता है, और रात्रि जघन्य बारह मुहूर्त की होती है । यह दिन उत्तरायण का अन्तिम दिन होता है । यह अहो रात पूर्ण हो तब सूर्य सम्वत्सर संपूर्ण होता है । (६३-६५)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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