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________________ (४१८) अौ यदासर्वबाह्यमण्डले समुपस्थितौ । अहोरात्रेऽस्य वर्षस्य त्र्यशीतियुक् शतोन्मिते ॥३॥ तदा ताम्यां मुहूत्तैकषष्टयंशानां शतत्रयम् । सषट्षष्टिदिनांकृष्टं रजन्यां चाभिवर्द्धितम् ॥८४॥ तावद्भिश्च मुहूर्तेकषष्टि भागैर्यथोदितैः । विभाजितैरेकषष्टया मुहूर्तानि भवन्तिषट् ॥८५॥. अहोरात्रेऽस्यऽत्र तद्रात्रिरष्टादशमुहूर्तिका । उत्कृष्टाहश्चापकृष्टं स्यात् द्वादशमुहुर्तकम् ॥८६॥ याम्यायनस्य पूर्णस्याहोरात्रोऽयं किलान्तिमः । • त्र्यशीतियुगहोरात्रशतेनेदं हि पूर्यते ॥७॥. . इस तरह प्रत्येक मण्डल में २/६१ मुहूर्त जितना दिन अल्प होते जाते हैं और इतने प्रमाण में रात्रि बड़ी होती जाती हैं । जब दोनों सूर्य वर्ष के १८३वें अहोरात्र में सर्व से बाहर के मंडल में आता हैं, तब दिन ३६६/६१-६ मुहूर्त प्रमाण छोटा होता है।और इतने प्रमाण में रात्रि लम्बी होती है, अत: दिन अठारह के बदले बारह मुहूर्त का होता है, और रात्रि इसी प्रमाण में लम्बी अर्थात् बारह के बदले अठारह महत की होती है । यह १८३वा अहोरात जब पूर्ण होता है । दक्षिणायन का आखिर अहो रात होता है, इस तरह दक्षिणायन १८३ अहो रात से पूर्ण होता है । (८२-८७) लोके तु :रसद्विनाडयोऽर्कपला मृगेस्यु, स चाप कुम्भेऽष्टकृतैः पलैस्ताः । अलौ च मीनेऽष्टयमाः सशक्रा मेषे तुलाग्रामपि त्रिंशदेव ॥८॥ कन्या वृषे यूशिखिनोऽङ्ग वेदाः सार्कास्त्रिरामा मिथुने च सिंहे। कर्के त्रिरामा वसुवेदयुक्ता एषा मितिः संक्रमवासराणाम् ॥६॥ लोक रूढि तो इस तरह है - दिनमान मकर संक्रान्ति में छब्बीस घड़ी और बारह पल होती है, धनुष्य (धन) और कुंभ संक्रान्ति में छब्बीस घड़ी और ४८ पल होते हैं, वश्चिक और मीन संक्रान्ति में अट्ठाईस घड़ी और चौदह है, मेष और तुला संक्रान्ति में तीस घडी है, कन्या और वृष संक्रान्ति में इकतीस घड़ी और छियालीस पल है, मिथुन और सिंह संक्रान्ति में तैंतीस घड़ी और बारह पल हैं तथा कर्क संक्रान्ति में तैंतीस घड़ी और अड़तालीस पल होते हैं । (८८-८६) इसका कोष्टक इस प्रकार है :
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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