________________
(४१७) आक्रमेते यदा भानू सर्वाभ्यन्तर मंडले । अष्टादश मुहुर्तात्मा सर्वेत्कृष्टा दिनस्तदा ॥७॥ रात्रिः सर्वजघन्या तु स्यात् द्वादश मुहुर्तिका । अथ क्रमात् रात्रिवृद्धिः भावनीया दिन क्षतिः ॥७६॥ युग्मं ॥
अब दूसरा अनुयोग द्वार के विषय में कहते हैं - जब दोनों सूर्य सर्व अभ्यंतर मंडल में संक्रमण करते हैं, तब दिन बड़े में बड़ा अठारह मुहूर्त का होता है और रात्रि छोटे में छोटी बारह मुहुर्त की होती है, फिर क्रमशः दिन छोटा होता जाता है और रात्रि लम्बी होती है । (७५-७६) .
यदा तस्माद्विनिर्यान्तौ सर्वाभ्यन्तर मण्डलात् । आरभमाणौ नत्याद्वमहोरात्रेऽस्य चादिमे ॥७७॥ संक्रम्य चरतः सर्वाभ्यन्तरानन्तर स्थितम् । द्वितीयं मण्डलं सूर्यो द्वीपमन्दिर दीपकौ ॥७८॥ द्वाभ्यां मुहूर्तेकषष्टि भागाभ्यां दिवसस्तदा । हीयतेवासतेयी च ताभ्यामेवविवर्द्धते ॥७६॥ त्रिभि विशेषकं ।।
जब द्वीपरूपी मन्दिर के दीप समान दोनों सूर्य इस सर्वाभ्यन्तर मण्डल से निकलते हुए नये वर्ष का प्रारंभ करता है, तब उसके पहले अहो रात्रि में वह सर्वाभयन्तर मंडल के पास रहता है, तब दूसरे मण्डल में गमन करता है, और उस समय में २/६१ .मुहुर्त जितना दिन कम होता है और रात्रि उतनी लम्बी होती है। (७७-७६)
अहोरात्रे द्वितीयेऽस्य तृतीयमंडले यदा । संक्रान्तौ तरणी सर्वान्तरानन्तर मण्डलात् ॥८०॥ मुहुर्तकषष्टि भागैश्चतुर्भिः दिवसस्तदा । हीयते वर्द्धते रात्रिः भागैस्तावद्भिरेव च ॥१॥ युग्मं ॥
इस वर्ष में दूसरी अहो रात में जब ये सूर्य सर्वाभ्यनतर मंडल से तीसरे मंडल में प्रवेश करता है तब दिन ४/६१ मुहुर्त प्रमाण कम होता है और रात इसके अनुसार लम्बी होती जाती है । (८०-८१)
एवं मुहूर्तेकषष्टि भागौ द्वौ प्रतिमण्डलम् । हापयन्तौ दिनक्षेत्रे वर्द्धयन्तो निशा दिशि ॥२॥