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(४१६) उसके बाद फिरते हुए दोनों सूर्य बाहर के पहले मंडल से सर्व के अन्दर एक सौ तिरासी दिन में मंडल में आते है, तब दूसरे छः महीने पूरे होते हैं । अतः उत्तरायण सम्पूर्ण होता है और तीन सौ छियासठ दिन रात का एक वर्ष पूर्ण होता है । (७२-७३)
एवं च :सर्वान्तर सर्व बाह्य मण्डलयोः किलैकशः ।
प्रत्यब्दं सूर्यचारः स्यात् सर्वेष्वन्येषु च द्विशः ॥७४॥'
इस तरह से १- सर्व से अन्दर और २- सर्व से बाहर के इस प्रकार दो मंडलों में एक-एक बार और शेष सर्व मंडलों में दो बार प्रत्येक वर्ष में सूर्य का गमनागमन (आना जाना) होता है । (७४) ।
"तथा च आगमः । ज आणं सरिए सव्वम्भन्तराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसकं मित्ता चार चरइ सन्न वाहिराओ य मंडलाओ सव्वभंतर मंडलं उवसंक मित्ता चार चरइ ए सणं अद्धा केवइएणं राई दियग्गेणं आहियत्तिवएज्जा ॥ तिन्नि छावटठे राइंदियसए राइदियग्गेण आहियत्तिएज्जा। ता ए याएणं अद्धाए सूरिए कइ मंडलाइ चरइताः । चुल सीयं मंडलसयं चारं चरई, बासीयं मंडल सयं दुफ्लुतो चरइ । तं जहां निक्ख समाणे चेव पवि समाणे चेव दुवेय खलु मंडलाइं सई चरइ । तं जहा । सव्वब्भन्तरं चेव सव्व वाहिरं चेव मंडलं ॥"
इति मंडल चार संख्या प्ररूपणा ॥ "इस सम्बन्ध में आगम के अन्दर उल्लेख मिलता है कि - सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल से संक्रमण करके, सर्व बाह्य मंडल में आता है और वापिस सर्व बाह्य मंडल से संक्रमण करके सर्वाभ्यन्तरमंडल में गमन करता है, उतने काल कितने अहोरात कहलाते हैं ? उत्तर - उतने काल में तीन सौ छियासठ अहोरात कहलाता है उतने समय में सूर्य कितने मंउल में फिरते हैं ? उत्तर - उतने समय में सूर्य एक सौ चौरासी मंडलों में फिरते हैं । उसमें से एक सौ बयासी मंडल में दो दो बार फिरते हैं (फिर कर निकलते हैं और फिर प्रवेश करते हैं इस तरह दो बार) और एक सबसे बाहर का । इस तरह दो मंडल में वे एक ही बार फिरते हैं।'
इसके अनुसार प्रत्येक वर्ष के मण्डल की चार (गति) संख्या की प्ररूषणा की । यह प्रथम अनुयोग द्वार है।