SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 468
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (४१५) प्रति मण्डलं मुहूर्त गतिमानप्ररूपणा । मण्डले मण्डले दृष्टिपथ प्राप्तिप्ररूपणा ॥६६॥ प्ररूपणा सप्तमी च ख्यातार्धमण्डलस्थितेः । अनुयोगद्वारमथ प्रथमं परितन्यते ॥६७॥ . १- प्रत्येक वर्ष में सूर्य के मण्डल में गति की संख्या, २- वर्ष में हमेशा की रात्रि और दिन का प्रमाण, ३- प्रत्येक मंडल में क्षेत्र विभाग अनुसार रात-दिन, ४मण्डल का परिक्षेप अर्थात घेरावा, ५- प्रत्येक मंडल में एक मुहूर्त में गति का माप, ६- प्रत्येक मण्डल में दृष्टि पथ प्राप्ति और ७- अर्धमण्डल की स्थिति । ये सात अनुयोग द्वार है । इन सात द्वार में से प्रथम द्वार के विषय में कहते हैं । (६४-६७) चरतोऽौं यदा सर्वान्तरानन्तर मण्डले । सूर्यसंवत्सरस्याहोरात्रोऽयं प्रथमस्तदा ॥६८॥ जब दोनों सूर्य सर्व प्रकार से अभ्यन्तर मंडल के बाद के मंडल में फिरता है, तब संवत्सर का प्रथम दिन-रात कहलाता है । (६८) त्र्यशीतियुक् शततमे द्वैतीयीकात्तु मण्डलात् । परिपाट्या सर्वबाह्यामण्डले तौ यदागतौ ॥६६॥ संपूर्णाः सूर्यवर्षस्य षण्मासाः 'प्रथमे यदा । एतदेव च वर्षे ऽस्मिन् दक्षिणायनमुच्यते ॥७०॥ युग्मं ॥ उसके बाद जंब वे दूसरे मण्डल में घूमते हुए अनुक्रम से एक सौ तिरासी दिन में, अर्थात. सर्व प्रकार से बाहर के मण्डल में आता है, तब सूर्य वर्ष के प्रथम छ: महीने होते है, जो इस वर्ष का दक्षिणायन कहलाता है । (६६-७०) सर्वबाह्यावक्तिनेऽथ मण्डलेऽौ यदा पुनः । तदोत्तरायणस्याहोरात्रोऽयं प्रथमो भवेत् ॥७१॥ . जब वे दोनों सूर्य सर्वबाह्य मंडल से अन्दर के पहले मंडल में आते हैं, तब वह उत्तरायण का प्रथम दिन रात होता है । (७१) त्र्यशीतियुक्शततमे बाहार्वाचीन मण्डलात् । यदा क्रमाद्रवी प्राप्तौ सर्वाभ्यन्तर मण्डले ॥७२॥ पूर्णा द्वितीया षण्मासा : पूर्णं तथोत्तरायणम् । पूर्णं वर्षं स षट्पष्टयहोरात्रनि शतात्मकम् ॥७३॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy