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________________ (४१४). इस तरह से सर्व अभ्यन्तर मण्डलों में दोनो सूर्यों का परस्पर अन्तर पूर्व में कहे अनुसार ६६६४० योजन शेष रहता है । (५६) इति मंडल मंडले सूर्ययोः परस्परम बाधा ॥ ३ ॥ इति मण्डलाबाधा प्ररूपणा ॥३॥ इस प्रकार से मण्डल-मण्डल में सूर्यो का परस्पर अबाधा कहा है । (३) यह तीसरी मंडलाबाधा की प्ररूपणा पूर्ण हुई (३). .... द्वे द्वे च योजने सूर्य मण्डलानां मिथोऽन्तरम् । कथमेतद् इति श्रोतुं श्रद्धा चेत् श्रूयतां तदा ॥६०॥. अब मण्डलों के अन्तर विषय कहते हैं । सूर्य के मण्डलों का परस्पर अन्तर दो-दो योजन का है । वह किस प्रकार का है, वह श्रद्धा पूर्वक सुनो जैसा मैने सुना है । - (६०) सूर्य मण्डल विष्कम्भे स्फूरच्चतुरशीतिना । शतेन गुणिते त्यक्ते मण्डलक्षेत्रविस्तृतेः ॥६१॥ शेषा स्थिता योजनानां सषट्षष्टिः शतत्रयी । सत्र्यशीतिशतेनास्यां भक्तायामेतदन्तरम ॥६२॥ इति मण्डलाऽन्तर प्ररूपण ॥४॥ सूर्य मंडल की चौडाई ४८/११ को १८४ से गुणा करने से जो संख्या आती है, उसे मंडल क्षेत्र की चौड़ाई में से निकाल देने पर ३६६ योजन रहता है, और इसे १८३ द्वारा भाग देने पर दो योजन आता है । (६१-६२) इस तरह से मंडल का अन्तर का कथन कहा है । (४) कर्तव्या मण्डलचारप्ररूपणा च सम्प्रति । सप्तानुयोगद्वारा णि तत्राहुः तत्ववेदिनः ॥६३॥ अब मंडल की गति विषय कहते है, इसके लिए तत्ववेत्ता महापुरुषों ने | सात अनुयोग द्वार कहे है वह इस प्रकार :- (६३) प्रत्यब्दं मण्डलचार संख्या प्ररूपणा रवेः । . वर्षान्तः प्रत्यहं रात्रि दिनमान प्ररूपणाः ॥१४॥ मण्डले मण्डले क्षेत्र विभागेनाप्यहर्निशोः । प्ररूपणा मण्डलानां परिक्षेपप्ररूपणा ॥६५॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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