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________________ (४०८) एवं प्रत्यग्वेिदेहा नामपेक्षया सुमेरूतः । नैऋतस्थायि निषधे विज्ञेया मण्डलावली ॥२६॥ परन्तु पूर्व महाविदेह की अपेक्षा से नीलवान पर के तिरसठ मंडल मेरू पर्वत से ईशान कोने में समझना । जबकि पश्चिम विदेह की अपेक्षा से निषध के ऊपर के तिरसठ, मेरू पर्वत से नैऋतय में समझना चाहिए । (२५-२६) किं च - विदिग्गताभ्यां श्रेणीभ्यां मण्डलाभ्यौ स्थिते इमे। औदयिक क्षेत्र परावर्तादयनयोः द्वयोः ॥२७॥ विदिशा की श्रेणि में रहे ये दोनों तिरसठ-तिरसठ मंडल उदय क्षेत्र के परावर्तन के कारण अलग-अलग दो 'अयन' में आते है । (२७) . . . कान्तिहान्याऽयने याम्येऽगिर्वागगतो रवि । दृश्येते कान्ति वृद्धया चैक दूरतोऽप्युत्तरायणे ॥२८॥ दक्षिणायन में दोनों सूर्य की कान्ति घटती जाती है, परन्तु आगे बढ़ते उत्तरायण में कान्ति बढती जाती है और इससे उस समय में वे दूर से भी दिखते हैं । (२८) ‘एवं हरिवर्ष रम्यक जीवा कोटयोरपि भावना ॥'. - 'हरिवर्ष क्षेत्र तथा रम्यक् क्षेत्र की जीवा की दोनों कोटी पर रहे, दो-दो मंडलों की भी इसी ही तरह से भावना समझना।' . . "तथा हु :- जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे - जम्बू द्वीपेणं भंते दीवे सूरिया उदीण पाइणं उग्गच्छ पाइण दाहिणं आगच्छन्ति (१) पूर्व विदेहापेक्षयेदम् । पाइणदाहिणं उग्गच्छ दाहिण पडीणं आगच्छन्ति (२) भरतोपेक्षयेदम् । दाहिण पडीणं उग्गच्छ पडीण उदीणं आगच्छन्ति (३) पश्चिम विदेहापेक्षयेदम् । पडीण उदीणं उग्गच्छ उदीण पाइणं आगच्छन्ति (४) ऐरावता पेक्षयेदम् ॥" . ___'इस सम्बन्ध में श्री जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र' में कहा है कि हे भगवन् ! जम्बू द्वीप में सूर्य १- पूर्व विदेह की अपेक्षा से उत्तर-पूर्व में उदय होकर पूर्व-दक्षिण में आता है । २- भरतक्षेत्र की अपेक्षा से पूर्व-दक्षिण में उदय होकर दक्षिण-पश्चिम में आता है । ३- पश्चिम विदेह की अपेक्षा से दक्षिण-पश्चिम में उदय होकर पश्चिम-उत्तर में आता है, और - ऐरवत क्षेत्र की अपेक्षा से पश्चिम-उत्तर में उदय दोकर उत्तर-पूर्व में आता है ।'
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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