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ही दूसरा नाम समझना । क्योंकि क्षेत्र तो अल्प है। इससे पूर्वाचार्यों ने इस तरह प्रसिद्ध कहा है । दूसरा मत इस प्रकार है कि - पर्वत पृथ्वी और विमानों का प्रामाणंगुल से माप करने को कहा है, अतः उस माप से ताराओं के विमान के स्वरूप में कोटि ही होता है, किन्तु जब उनसे आंगुल के माप से सर्वतः मापने में आए तंब वह कोटा कोटी होता है ।' विशेषणवती में इस तरह कहा है -
कोडा कोडी सन्नतरं तु मन्नति खित्तथोव तया । अन्ने उस्सेहंगुलमाणं काउण ताराणाम् ॥२१४॥
कई आचार्य, क्षेत्र अल्प होने से कोटा कोटी.को ही कोटी का ही दूसरा नाम कहा है । और दूसरों ने ताराओं का उत्सेधांगुल द्वारा ही माप निकलने का कहते हैं। (२१४)
जयति जगति जम्बूद्वीप भूमि द्यवोऽयम् । सतत मितरवार्धिद्वीप सामन्तसेव्यः ॥ सुर गिरिरयमुच्चैरंशुको नीलचूल ।
श्रयति कनकदंडो, यस्य राजध्वजत्वम् ॥२१५॥
हमेशा अन्य द्वीप समुद्र रूपी सेवकों से सेवा होती यह जम्बू द्वीप मानों एक विजयी राजा के समान है । क्योंकि इसे भी उच्च अंशवाला (मेरुपक्ष में अंशु-किरणवाला) नील चूलावाल - चूलिका वाला और कनक दंड वाला सुरगिरि अर्थात् मेरू पर्वत रूपी राजध्वज है । (२१५)
विश्वाश्चर्यद कीर्ति कीर्ति विजय श्री वाचकेन्द्रान्तिषद्राज श्री तनयोऽतनिष्ट विनयः श्री तेजपालात्मजः ।
काव्यं यत्किल तत्र निश्चित जगत्तत्व प्रदीपोपमे, सर्गः पूर्तिमितो युतोऽदभुत गुणैरेकोनविशः सुखम् ।।२१६॥
. इति एकोनविंशः सर्गः समस्त विश्व को आश्चर्य चकित करने वाले कीर्तिमान श्री कीर्ति विजय जी वाचस्पति के अन्तेवासी शिष्य तथा माता राज श्री और पिता श्री तेजपाल के सुपुत्र विनय विजय जी उपाध्याय ने जगत के निश्चित तत्वों को दीपक के समान प्रकाश में लाने वाले यह जो काव्य रचा है इसका अद्भुत गुणवाला उन्नीसवां सर्ग विघ्न रहित सम्पूर्ण हुआ ॥२१६॥
उन्नीसवां सर्ग समाप्त