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________________ (४०२) षट् पंचाशच्चऋक्षाण्यनिलपथपृश्न्निद्रचन्दोदयान्तर । .. मुक्ताश्रेण्याः श्रयन्तिश्रियमतिविततश्रीभरैः विश्रुतानि ॥२११॥ घर में जैसे दीपक प्रकाश फैलाता है वैसे जम्बूद्वीप में प्रकाश करने वाले दो सूर्य और दो चन्द्र है, और इसके चारों तरफ चमकते एक सौ छिहत्तर ग्रह है, इतना ही नहीं परन्तु आकाश रूपी अत्यन्त विस्तार रूपी चंदोहे के अन्दर मोती की श्रेणि की शोभा धारण करने वाले छप्पन प्रसिद्ध नक्षत्र है । (२११) एकं लक्षं सहस्राः सततमिह चतुस्त्रिशदुद्योतहृद्याः । न्यूनाः पंचाशतीच्यैः दधति रूचिरतां तारकाकोटिकोटयः ॥ प्रोद्यत्प्रस्वेदविन्द्वावलय इव निशि व्योमलक्ष्मीमृगाक्ष्याः । । । रत्यध्यासं विधातुं प्रियतम विधुना गाढमालिंर्गितायाः ॥२१२॥ मनोहर उद्योत वाले और मन को उल्लसित करने वाले एक लाख तैंतीस हजार नौ सौ पचास कोटा कोटी तारा समूह है । जो मानो रात के समय में रति सुख प्रसंग पर अपने स्वामी से आलिंगित हुई आकाश लक्ष्मी रूपी स्त्री को उत्पन्न हुए प्रस्वेद बिन्दु समान लगता है। कोटाकोटिपदेन केचन बुधाः कोटिं वदन्त्यत्र यत् । क्षेत्रस्तोकतयावकाश घटना नैषां भवेदन्यथा ॥ अन्ये कोटय एव तारकततेरौत्सेधिकैरंगुलैः । कोटा कोटिदशां भजन्ति घटिता इत्यूचिरे सूरयः ॥२१३॥ यहां कोटा कोटी पद का अर्थ कई विद्वान 'कोटी-करोड' ही करते हैं, क्योंकि क्षेत्र अल्प होने से इतनी बड़ी संख्या में ताराओं के अवकाश की बात संभव नहीं हो सकती है । अन्य आचार्य इस तरह कहते हैं कि - उत्सेधांगुल के प्रमाण से घटाने से करोड़ ताराओं की संख्या कोटा कोटी संभव हो सकती है । (२१३) "तथा चसंग्रहणी वृत्तौ॥इह द्वेमते।तत्रैके कोटीनामेवकोटीकोटीति संज्ञांतरं नामान्तरं मन्यन्ते क्षेत्रस्य स्तोकत्वेन तथा पूर्वाचार्य प्रसिद्धेः । अन्ये त्वाहुः नगपुढवी विमाणाइंमिणसुपमाणंगुलेणंतु इति वचनात्ताराविमानानां स्वरूपेण कोटय एव सत्यो यदौत्सेधांगुलेन सर्वतो मीयन्ते तदा कोटा कोटयो जायन्ते । तथोक्तं विशेषणवत्याम् ॥" ___ 'इस सम्बन्ध में संग्रहणी की वृत्ति में इस तरह उल्लेख मिलता है - इस विषय में दो मत है । एक मत वाले कहते हैं कि 'कोटा कोटी' यह शब्द कोटि का
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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