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प्रागुक्ताः पर्वताः कूटाः कुंडानि च महापगाः।
सर्वे वृत्ता वेदिकया वनाढयोभयपार्श्वया ॥१६८॥ .
पूर्वोक्त सर्व पर्वत, शिखर, कुंड और महानदियों के चारों तरफ पद्म वेदिक हैं और पद्मवेदिका के दोनों तरफ में बगीचा है । (१६८)
वेदिकावनखंडानां सर्वत्राप्यविशेषितम् । स्वरूपं जगती स्थायिवेदिकावनखंडवत् ॥१६६॥...
इन वेदिका और बगीचों का समस्त स्वरूप सर्वत्र, जगती के वेदिका और बगीचों के अनुसार है । (१६६)
ऐरवते च भरते विजयेष्वखिलेषु । .. प्रत्येकं त्रित्रिसद्भावात्तीर्थानां द्वयुत्तरं शतम् ॥२००॥ .
ऐरवत क्षेत्र में भरत क्षेत्र में और प्रत्येक विजय में तीन-तीन तीर्थ आए हैं इससे तीर्थों की कुल संख्या एक सौ. दो होती है । (२००) .. .
श्रेण्य : चतस्रः प्रत्येकं वैताढयेषु गुहाद्वयम् ।
श्रेण्य : शत स्युः षट्त्रिंशमष्टषष्टिश्च कन्दराः ॥२०१॥
प्रत्येक वैताढय पर्वत में चार चार श्रेणि और दो-दो गुफा आई हैं, इससे चौंतीस वैताढय की कुल श्रेणि एक सौ छत्तीस है और गुफा अड़सठ है । (२०१)
दशोत्तरं पुरशतं प्रति वैताढयपर्वतम् । सप्तत्रिंशच्छतान्येवं चत्वारिंशानि तान्यपि ॥२०२॥
प्रत्येक वैताढय पर्वत पर एक सौ दस नगर है । इससे सब मिलाकर तीन हजार सात सौ चालीस नगर है । (२०२)
द्वात्रिंशच्च विदेहस्था भरतैरवते इति । . . विजयाः स्युः चतुस्त्रिंशच्चक्री जेतव्यभूभयः ॥२०३॥ चतुस्विंशशद्राजधान्यो द्वो कुरुस्थो महाद्रुमौ ।
अस्यान्तिकेन्तर द्वीपाः षट्पंचाशच्च वार्खिगाः ॥२०४॥
विदेह में बत्तीस भरत क्षेत्र में एक और ऐरवत क्षेत्र की एक, इस तरह सब मिलाकर चौंतीस विजय है उसे चक्रवर्ती जीतता है, इसी ही तरह चौंतीस राजधानी है, और कुरु में दो महावृक्ष है और समुद्र के नजदीक के अन्दर छप्पन अर्न्तद्वीप आये हुए है । (२०३-२०४)