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________________ (३६८) जिनेश्वर भगवान ने सब मिलाकर चौदह लाख छप्पन हजार नब्बे नदियां कही है। (१८४) कुंडोद्वेधस्तथा द्वीपोच्छायस्तद् भवनस्य च । परिमाणं समग्रासु नदीषु सद्दशं भवेत् ॥१८५॥ कुंड की गहराई, द्वीपों की ऊंचाई तथा भवन का माप, सर्व नदियों में एक समान होता है । (१८६) शीता च हरिसलिला गंगा सिन्धु च रोहिता। स्वर्ण कूला नरकान्ता नद्योऽभूः दक्षिणामुखाः ॥१८६॥... उदक याता रक्तवती रक्ता च रूप्यकूलिका। नारीकान्ता रोहितांशा शीतोदा हरिकान्ति का ॥१८॥ शीता, हरिसलिला, गंगा, सिन्धु, रोहिता, स्वर्ण कूला और नरकान्ता ये सात नदियां दक्षिण सन्मुख बहती है, जबकि रक्तवती, रक्ता रूप्यकूला, नारीकांता, रोहितांशा शीतोदा और हरिकान्ता ये सात नदियां उत्तर सन्मुख बहती है । (१८६-१८७) सिन्धुं बिना याः सरितो दक्षिणां दिशा भागताः । ताः पूर्वाम्बुधिगामिन्याः सिन्धुस्तु पश्चिमाब्धिगा॥१८॥ दक्षिण दिशा में बहने वाली में से एक सिन्धु के बिना शेष सब पूर्व समुद्र में मिलती है । सिन्धु पश्चिम समुद्र में मिलती है । (१८८) उदक् याताश्च या नद्यो बिना रक्ता महानदीम् । ताः पश्चिमाब्धि गामिन्यो रक्ता पूर्वाब्धि गामिनी ॥१८६॥ उत्तर दिशा में बहने वाली में से एक रक्ता के बिना शेष सब पश्चिम समुद्र में मिलती है, रक्ता नदी पूर्व समुद्र में मिलती है । (१८६) स्वकीय हद विस्तारेऽशीति भक्ते यताप्यते । दक्षिणाभिमुखीनां सा नदीनां मुख विस्तृतिः ॥१६॥ उत्तराभिमुखीनां तु स्वकीय हृद विस्तृतौ । . चत्वारिंशद्विभक्तायां यल्लब्धं तन्मिता मता ॥१६॥ व्यवस्थेयं दक्षिणस्यां सरितां मन्दराचलात् । उदक् याम्योत्तर दिशाभि मुखीनां विपर्ययात् ॥१६२॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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