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- (३६७) परिवारतया प्रसिद्धा अपि सूर्यस्यापि स एव परिवारः । नपुनः पृथक् प्रतीयते ॥ उक्तं च समवा यांग वृत्तौ । अष्टाशीतिः महाग्रहाः एते यद्यपि चन्द्र स्यैव परिवारः अन्यत्रभु यते तथापि सूर्यस्यामि इन्दुत्वात् एते एव परिवार तया अवसेया इति । तथा गंगादि सम्बन्धीनि एवं अष्टाः विंशति नदी संहस्राणि अन्नदीनामपि परिवार इति ॥ एवं चान्तर्नदीनां पृथक्परिवारमनभ्युपगत्छन्तो यथा वस्थितामेव नदी संख्या मन्यन्ते इत्यादिकं जम्बू द्वीप संग्रहणी वृत्तौ ।"
___ 'और कोई इस तरह कहता है कि - 'यदि अन्तर्नदियों में हजारों नदियां परिवार रूप में प्रवेश करती हैं तो फिर अनुक्रम से आगे बढ़ते उन नदियों का विस्तार गंगा आदि नदियों के समान क्यों नहीं होता ? इसलिए सिद्धान्त में जो परिवार कहा है, उस सम्बन्ध में यह समझना है कि जैसे जो अमुक अट्ठाईस ग्रह चन्द्रमा के परिवार रूप है वही अट्ठाईस ग्रह सूर्य के परिवार रूप है । इस सूर्य का कोई अलग परिवार नहीं है । इसी तरह इसके विषय में वैसे ही है। श्री समवायांग सूत्र की टीका में कहा है कि ये अट्ठाईस महाग्रहों को अन्यत्र केवल चन्द्रमा के ही परिवार भूत कहे है, फिर भी इन्द्र होने से इसके परिवार रूप भी उन्होंने कहा है। अत: गंगा आदि का अट्ठाईस हजार नदियों का परिवार है, वही परिवार अन्तर्नदियों का है । उनका अलग परिवार नहीं है । अर्थात् नदियों की यथा १४५६००० संख्या ही वास्तविकहै' इस प्रकार से जम्बू द्वीप संग्रहणी की टीका में उल्लेख मिलता
तथा चाहुः श्री हरिभद्र सूरयःसीया सी ओया विय बत्तीस सहस्स पंचलक्खेहि । सव्वे चउद्दसललक्खा छप्पन्न सहस्स मेल विया ॥१८३॥
आचार्य श्री हरिभद्र सूरि जी भी कहते हैं कि शीता और शीतोदा को पांच लाख बत्तीस हजार नदियों का परिवार होता है । इस तरह सारा जोड़ लगाते, चौदह लाख छप्पन हजार नदियां होती है । (१८३)
दिक्पटोऽप्येवमाह :जम्बू दीवि नराहिव संखा सव्वनइ चउद्दहयलक्खा । छप्पन्नं स सहस्सा नवइ नइओ कहंति जिणा ॥१८४।। दिगम्बर आचार्य भी कहते है कि - हे राजन् ! जम्बू द्वीप के अन्दर श्री