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________________ (३६६) हमने तो पूर्वाचार्यों के अनुसार की संख्या कही है, हमसे फेर फार नहीं कहा जा सकता है । क्योंकि हम पूर्वाचार्यों के मार्ग अनुसार चलने वाले है। (१८१) “केचित्तु गाहावई महानईप वूडा समाणी सुकच्छ महाकच्छ विजयए दुहाविभयमाणी अट्ठाविसाए सलिला सहस्सेहिं समग्गा दाहिणेणं सीयं महानई समप्पेइ इत्यादि जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वचनात् तथा नद्यो विजयच्छेदिन्यो रोहितावत्कुंडा: स्वनाम समदेवी वासा अष्यविंशति नदी सहस्रानुगाः प्रत्येकं सर्वत्रं समा: पंचविंशशत विस्तृता अर्धतृतीय योजनाव गाहा गाहावती पंक्वती इत्याधुमाम्वाति वाचक वचनाच्च द्वादशानामंतर्नदी नामपि प्रत्येकमष्टा विशति सहस्र रूपं परिवारं मन्यमानाः ट्विशत्सहस्राधिक नदी लक्ष त्रयेणन्तर्नदी परिवारेण सह द्विनवति सहस्राधिकानि सप्तदश नदी लक्षाणि मन्यन्ते ॥" _ 'कईयों ने तो 'सुकच्छ और महाकच्छ' विजय को 'गाहावती' अन्तर नदी, दो विभाग में बटवारा करने वाली अट्ठाईस हजार नदियों के परिवार सहित दक्षिण में शीता महानदी से मिलती है।' इत्यादि जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में उल्लेख मिलता है, इसके आधार पर विजय को विभाग करने वाली रोहिता के समान कुंडवाली अपने नाम वाली देवियों के निवास युक्त है। अट्ठाईस हजार नदियों से संगत सर्वत्र समान रूप में सवा सौ योजन विस्तार वाली और अढाई योजन गहरी गाहावती आदि अंतर नदियां है। इत्यादि उमास्वाति वाचक वर्य के वचन से प्रत्येक अन्तर्नदी के अट्ठाईस-अट्ठाईस हजार के परिवार की गिनती करे तो बारह अन्तर नदियों का तीन लाख छत्तीस हजार परिवार मानकर तो कुल मिलाकर सत्रह लाख बयानवें हजार नदियां कही है।" उक्तं च - सुत्रे चउद्दसलक्खा छप्पन्न सहस्य जम्बूद्वीवंमि। . हुंति उसत्तरस लक्खा बाणवइ सहस्स मेल विया ॥१८२॥ अन्य स्थान पर भी उल्लेख मिलता है कि - सूत्र में जम्बूद्वीप के अन्दर चौदह लाख छप्पंन हजार नदियां है । उसमें अन्य नदियां मिलाए तो सर्व मिलाकर सत्तर लाख बयानवे हजार नदियां होती है । (१७२) "अन्ये तु यदि अन्तर्नदीषु अनेकानि परिवार नदी सहस्राणि प्रवेशेयुः तदाकथं तासांक्रमेणपरतः परतः गच्छन्तीनां विस्तार विशेषो गंगादिनदीनामिव नसंपद्येता यस्तु परिवारः सिद्धान्तेऽभिदधेस तुयथाष्टाशीतिः ग्रहाः चन्द्रस्यैव
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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