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________________ (३६५) जम्बू द्वीपोऽमितो रूद्धः स्वविरूद्धेन वार्धिना । स्वमोक्षायेव दत्तेऽस्मै कनी: शैवलिनीरिमा ॥१७॥ जम्बू द्वीप की ये सब नदियां समुद्र में मिलती है, इसके ऊपर ग्रन्थकार कवि उत्प्रेक्षा करते हैं कि दुश्मन से घिरा हुआ एक राजा जैसे अपना छुटकारा प्राप्त करने के लिए उसे अपनी कन्या देता है वैसे ही समुद्र रूपी दुश्मन से घिरा हुआ यह जम्बूद्वीप अपना छुटकारा प्राप्त करने के लिए मानो इन सारी नदियों रूपी कन्याओं का समर्पण करता है । (१७८) __चतुः षष्टि विजयगा महानद्यश्चतुर्दश । अन्तर्नद्यो द्वादशातिरिच्यन्ते नवतिस्त्वियम् ॥१७॥ इस गिनती के उपरांत नब्बे और नदियां है, बत्तीस विजय में रही, चौंसठ महानदियां है और बारह नदियां, अन्तर नदियां है । (१७६) तथाहुः श्री रत्नशेखर सूरयः स्वक्षेत्र समासे । अडसयरि महाणइओ वारस अंत रणइओ सेसाओ। परिअरणइओ चउदस लख्खा छप्पण्ण सहस्साय ॥१८०॥ इस सम्बन्ध में श्री रतन शेखर सूरि जी के रचित क्षेत्र समास में इस तरह उल्लेख मिलता है - अठत्तर महानदियां है और बारह अन्तर नदियां है, दूसरी चौदह लाख छप्पन हजार उनके परिवार रूप नदियां है । (१८०) ___ "श्री मलयगिरयस्तु प्रवेशे व सर्वसंख्यया आत्मना सह चतुर्दशभिः नदीसहस्त्रैः समन्विता भवतीति । क्षेत्र समास वृत्तौ कच्छ विजय गत सिन्धुनदी वर्ण यन्तो महानदीना न पृथक् गणना इति सूचयां चक्रुः।तथापि द्वादश अन्तर नद्यो ऽतिरिच्यन्त एव इत्यत्र तत्वं बहुश्रुत गम्यमिति ज्ञेयम् ॥" ___“आचार्य श्री मलयगिरि जी ने तो क्षेत्र समास की वृत्ति में कच्छ विजय में रही सिन्धु नदी का वर्णन करते कहा है कि समुद्र में चौदह हजार नदियां मिलती है। इन चौदह हजार में सिन्धु महानदी स्वयं भी आ जाती है । अर्थात् महानदियों को अलग गिनने का नहीं है, इस प्रकार उन्होंने सूचना दी। फिर भी बारह अन्तर नदियां तो अधिक गिनना ही चाहिए। इसमें वास्तविकता क्या है ? यह तो बहुश्रुत ही जाने।" तथापि पूर्वाचार्यानुरोधात् संख्या तथोदिता । नात्र पर्यनुयोगार्हा वयं प्राच्य पथानुगाः ॥१८१॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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