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________________ (३६०) सक्रोशषड्योजनोच्चाः चैत्य प्रासाद शोभिताः । सर्वेऽपि भरतस्थायिवैताढयाकूटसोदराः ॥१४२॥ प्रत्येक वैताढय पर्वत के नौ-नौ शिखर है अत: चौंतीस वैताढय के सर्व मिलाकर तीन सौ छः शिखर होते हैं । नौवे के बीच में तीन-तीन सुवर्णमय होते हैं और शेष सब रत्नमय होते हैं । ये सब शिखर छ: योजन और एक कोस ऊंचे होते है, चैत्य और प्रासादों से अलंकृत होते हैं और भरत क्षेत्र के वैताढय के शिखरों के समान ही होते हैं । (१४०-१४२) . .. .. कूटाः सप्त सौमनसगन्धमादन शैलयोः । रुक्मिमहाहिमवतोरष्टावष्टौ पृथक् पृथक् ॥१४३॥ . . . . सौमनस और गंधमादन पर्वत के सात-सात शिखर हैं और रुक्मी तथा महा हिमवंत के आठ-आठ शिखर है । (१४३) विद्युत्प्रभ माल्यवतोः नीलवन्निषधागयोः । मेरोश्च नन्दनवने कूटाः. नव नवोदिताः ॥१४४॥ विद्युत्प्रभ और माल्यवान के, नीलवान और निषध के, तथा मेरू पर्वत के, नन्दन वन में नौ-नौ शिखर है। हिमवच्छिखरि कूटाः एकादश पृथक् पृथक् । · षोडशानां चतुःषष्टिः वक्षस्कारमहीभृताम् ॥१४५॥ हिमवान तथा शिखरी के अलग-अलग ग्यारह शिखर है, सोलह वक्षस्कार पर्वतों के मिलाकर चौंसठ शिखर होते हैं। . . हरिस्सहहरिकूट बलकूटोज्झिता इमे । । शतं सर्वेऽष्टपंचाशं हिमवत्कूटसन्निभाः ॥१४६॥ योजनानां पंच शतान्युच्चा रात्लाः मिथः समाः । साहस्त्राः स्वर्णजाः तुल्याः हरिस्सहादयः त्रय ॥१४७॥ ये सब मिलाकर एक सौ इकसठ शिखर होते हैं । इसमें से हस्सिह, हरिकूट तथा बलकूट ये तीन निकाल देने पर एक सौ अट्ठावन शेष रहे, ये सब रत्नमय है। पांच सौ योजन ऊंचे होते हैं और परस्पर समान है, तथा हरिस्सह आदि तीन शिखर परस्पर समान है, स्वर्णमय है, और हजार-हजार योजन ऊंचे है । (१४६-१४७)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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