________________
(३८८)
।
हैं। इसी तरह देवकुरु तथा उत्तर कुरु के बीच में भी समानता है । इन नौ में भरत, ऐरवत और विदेह क्षेत्र को छोड़कर छ: अकर्म भूमि अर्थात् कृषि आदि कर्म रहित है । भरत ऐरवत और महाविदेह ही कर्मभूमि है । (१२३-१२७)
तथाचात्र वर्षधरपर्वताः षट् प्रकीर्तिता । विदेहेभ्यो दक्षिणस्यामुदीच्यां च त्रयं त्रयम् ॥१२८॥
तथा छ: वर्षधर पर्वत कहे हैं, वे महाविदेह क्षेत्र से उत्तर दिशा में तीन और दक्षिण में भी तीन होते हैं । (१२८)
हिमवच्छिखरी चैकादशकूटो मिथः समौ । . . रुक्मिमहाहिमवंतावष्टकूटी तथैव च ॥१२६॥.. नीलवन्निषधौ तुल्यौ नवकूटौ परस्परम् । . . मेरू: निरूपमः सोऽपि नवकूटोपशोभितः ॥१३०॥
इन छ: में हिमवान और शिखरी पर्वत के ग्यारह-ग्यारह शिखर हैं और ये दोनों एक समान है । वैसे ही रुक्मी और हिमवान् आठ-आठ शिखर वाले, एक जैसे ही हैं, इसी तरह से नीलवान् और निषधपर्वत के नौ-नौं शिखर हैं, दोनों के बीच में समानता है। मेरू पर्वत आद्वतीय है, इसकी बराबरी कोई नहीं है । और इसके भी नौ सुशोभित शिखर हैं । (१३०) .
भरतैरवत क्षेत्रद्वात्रिंशद्विजयोद्भवाः, । वैताढयाः स्युः चतुस्त्रिंशत् प्रत्येकमेक भावतः ॥१३१॥ सर्वेऽप्येते रूप्यवर्णा नवकूटोपशोभिताः । . दशोत्तरशतद्रंगाभिभोग्यालिद्वयान्विताः ॥१३२॥
भरत क्षेत्र में एक, ऐरवत क्षेत्र में एक और महाविदेह क्षेत्र के बत्तीस विजय में एक-एक, इस तरह सब मिलाकर चौंतीस वैताढय पर्वत होते हैं । वे सब रूप्य वर्ण युक्त नौ-नौ शिखर से अलंकृत हैं, और उन प्रत्येक पर्वत में एक सौ दस नगर दो-दो श्रेणियों वाले हैं । (१३१-१३२)
चत्वारों वृत्तवैताढयाः समरूपाः परस्परम् । - हरिवर्षहै मवत हैरण्यवतरम्यके ॥१३३॥ .
हरिवर्ष, हैमवंत हैरण्यवंत तथा रम्यक् इन चारों में एक-एक इस तरह कुल चार, एक समान वृत्त वैतांढय पर्वत हैं । (१३३)