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नगरी स्यादयोध्याख्या नव योजन विस्तृता । द्वादशयोजनायामालंकृतोत्तमपूरुषैः ॥१२०॥ विशेषकं ॥
इस छः खण्डों में से एक उत्तरार्द्ध मध्यखण्ड है, जो उत्तर लवण समुद्र के दक्षिण में है, और वैताढय पर्वत के उत्तर में एक सौ चौदह योजन और ग्यारह कला पार करने के बाद समुद्र और वैताढय के बीच में आया है। उसमें नौ योजन चौड़ी और बारह योजन लम्बी उत्तम पुरुषों के निवास स्थान रूप अयोध्या नाम की नगरी है। (११८-१२०)
शेषाः पंचापि खंडाः स्युरनार्या धर्मवर्जिताः । अत्रापि चार्यदेशानामध्यर्द्धा पंचविंशतिः ॥१२१॥ एतेष्वैव हि देशेष जिनचक्रयर्धचक्रीणां । स्यादुत्तमनृणां जन्म प्रायो धर्मव्यवस्थितिः ॥१२२॥
शेष पांच खंड हैं वे अनार्य है, वहां धर्म जैसा कुछ भी नहीं है । पर्वत उत्तरार्ध मध्य खंड में भी केवल साढ़े पच्चीस आर्य देश है, और इसमें ही श्री जिनेश्वर भगवंत, चक्रवर्ती तथा वासुदेव आदि उत्तम महापुरुष जन्म लेते हैं, और वही धर्म की व्यवस्था है । (१२१-१२२) ..
एवं च जम्बू द्वीपऽस्मिन् सप्तक्षेत्री विराजते । मध्ये महाविदेहाख्यमपागुदक् त्रयं त्रयमं ॥१२३॥ . भरतरावंतेतत्र तुल्यरूपे निरूपिते ।
समस्वरूपे हैरण्यवते हैमवते अपि ॥१२४॥ रम्यकाख्य हरिवर्षे उभे तुलाधृते इव । पूर्वापर विदेहानामप्येवं तुल्यता मता ॥१२५॥ देवोत्तर कुरुणामप्येवं तुल्यत्वमाहितम् । बिना भरतैरवतविदेहान् अपराः पुनः ॥१२६॥ अकर्म भूमयः षट् स्युः कृष्यादिकर्म वर्जिताः । तिस्त्रो भरतैरवतविदेहाः कर्मभूमयः ॥१२७॥ युग्मं।
इस प्रकार जम्बू द्वीप के अन्दर सात क्षेत्र हैं । मध्य विभाग में एक महाविदेह है, और उत्तर दक्षिण तीन-तीन हैं । इसमें भरत और ऐरवत दोनों एक सद्दश है, तथा हैरण्यवंत और हैमवंत दोनों एक समान है, रम्यक तथा हरिवर्ष क्षेत्र, ये दोनों भी एक समान है । वैसे ही पूर्व महाविदेह और पश्चिम महाविदेह भी परस्पर समान