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'यह जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के अनुसार कहा है । क्षेत्र समास में तो ऐसा उल्लेख मिलता है कि - पांचवा श्री देवी कूट और नौवा गंधापाति कूट है।'
आद्ये चैत्यं शेषकूटदशके च सुधाभुजाम् । तत्तत्कूटसमाख्यानां स्युः प्रासादावतंसका ॥७६॥
प्रथम शिखर पर श्री जिनेश्वर भगवान का मन्दिर है, शेष दस शिखर पर उस शिखर के नाम वाले देवों का प्रासाद है । (७६)
पुण्डरीक हृदश्चात्र पद्महदसहोदरः । अस्मिश्च मूल कमलमेकयोजनसंमितम् ॥७७॥ तदर्धार्ध प्रमाणानि शेषाब्जबलर्यानि षट् ।
लक्ष्मी देवी वसत्यत्र स्थित्या श्रीदेवतेव सा ॥७॥
इस पर्वत पर पद्म सरोवर के समान ही एक पुंडरीक नामक सरोवर है। उसमें एक मूल कमल है। वह एक योजन प्रमाण है दूसरे और चारों तरफ छः वलयों में जितने कमल हैं, वे उत्तरोत्तर एक के बाद एक, दूसरे वलय में आधे से आधे विस्तार वाले है । यहां श्री देवी के समान ही लक्ष्मी देवी का निवास स्थान है। (७७-७८) . हिमवद् गिरिवत् सर्वं मान मात्रापि चिन्त्यताम् ।
ज्यावाहां धनुरांदीनां केवलं दिग्विपर्ययः ॥७६॥
इस पर्वत की जया, बाहा, धनु आदि सर्व का प्रमाण हिमवत पर्वत के अनुसार ही है, केवल दिशा का विपर्यय (उलटी) है । (७६)
नद्यस्तिस्त्रो हृदस्मात् निर्गताः त्रिभिरध्वभिः । नदी सुवर्णकूलाख्या रक्ता रक्तवतीति च ॥५०॥
जो पुंडरीक नाम का यहां सरोवर कहा है, उसमें से तीन रास्ते से तीन नदियां निकलती है । १- सुवर्णकूला, २- रक्ता और ३- रक्तवती (८०)
दक्षिणेनाध्वना तत्र निर्गत्य दक्षिणामुखी । सुवर्णकूला पतति कुण्डे स्वसम नामनि ॥१॥ ततो निर्गत्य हैरण्यवतोत्तरार्ध भेदिनी । . योजनार्थेन दूरस्था विकटापाति भूधरात् ॥२॥