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________________ (३८०) जो ग्यारह शिखरों की बात अब आगे अभी कहेंगे, इससे यह अलग समझना चाहिए । क्योंकि ऐसे कूट-शिखर के कारण से पर्वत मात्र के शिखर नाम का संभव हो सकता है । अतः अब उन ग्यारह का वर्णन करते हैं । (६८-६६) स चैकादशभिः कटैः परितोऽलंकतो गिरिः । प्रतिमाभिरिव श्राद्धधर्मः शर्मददर्शनः ॥७०॥ सुन्दर सम्यक्त्व वाले श्राद्ध (श्रावक) धर्म जैसे ग्यारह पडिमा (प्रतिमा) से शोभायमान होता है वैसे यह पर्वत चारों तरफ आए ग्यारह शिखरों से शोभायमान हो रहा है । (७०) आद्यं सिद्धायतनाख्यं पूर्ववारिधि सन्निधौ । द्वितीयं शिखरि स्वर्गिकूटं शिखरि संज्ञकम् ॥७१॥ तृतीयं है रण्यवतकूटं तत्स्वामिदैवतम् । । तूर्यं सुवर्णकूलाख्यं तन्नदीदेवतास्पदम् ॥७२॥ . दिक्कुमार्याः सुरादेव्याः पंचमं च तदाख्यया ।। षष्टं रक्तावर्तनाख्यं लक्ष्मीकूटं च सप्तमम् ॥७३॥ रक्तवत्यावर्तनाख्यं प्रज्ञप्तं कूटमष्टमम् । इला देव्या दिक् कुमार्या नाम्ना च नवमं मतम् ॥७४॥ दशमंचैखताख्यमैरावत सुराश्रियम् । स्यात्तिगिंछहदेशायास्तिगिछिकूटमन्तिमम् ॥७॥ इन ग्यारह शिखरों में से प्रथम शिखर पूर्व महासागर के नजदीक में आया है उसका "सिद्धायतन" नाम है, दूसरा शिखरी देव का 'शिखरी' नाम है तीसरा हिरण्य क्षेत्र का स्वामी 'हैरण्यवंत' नाम है । चौथा सुवर्ण कूलानदी की देवी का 'सुवर्णकुल' नाम है, पांचवा सुरादेवी नाम की दिक्कुमारी है उसी ही नाम का शिखर है, छठा 'रक्तवर्तन', सातवां लक्ष्मीकूट', आठवां 'रक्त वतया वर्त' है । नौवा इला देवी नामक दिक्कुमारी का उसी के नाम का शिखर है दसवां ऐरवत नाम के देव के आश्रयभूत ऐरवत नाम का शिखर है और अन्तिम ग्यारहवां तिगिंछ हद के स्वामीत्व का तिगिंछ कूट नाम का शिखर है । (७१-७५) . ___"इदं जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्राभि प्रायेण ॥क्षेत्र समासे तु अत्र पंचमं श्री देवी कूटं नवमं गन्धापाती कूट मिति दृश्यते ॥"
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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