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शेषमस्य स्वरूपं तु गन्धापाति नगेन्द्रवत् । एवं चत्वारोऽपि वृत्त वैताढया रालिकाः सभाः ॥६५॥
इसका शेष स्वरूप गन्धापाति वैताढय अनुसार है । और ये चारों वृत वैताढय एक समान रत्नमय हैं । (६५)
"एवं च क्षेत्र विचार सूत्र वृत्यभिप्रायेण हैमवते शब्दापाती हैरण्यवते विकटापाती हरिवर्षे गन्धपाती रम्यके माल्यवान् इति वृत्त वैताढयानां व्यवस्था ॥ जम्बूद्वीपवृत्यभिप्रायेण तु हैमवते शब्दापाती हरिवर्षे विकटापाती रम्यके गन्धापाती माल्यवान् इति व्यवस्थेति ॥अत्र तत्वं सर्वविद्वेधम् ॥"इति हैरण्यवत क्षेत्रम् ॥ .
क्षेत्र विचार सूत्र की वृत्ति के अभिप्राय से इसी ही तरह व्यवस्था है अर्थात् हैमवंत क्षेत्र में 'शब्दापाती' नाम का वृत्त वैताढय पर्वत आया है, हैरण्यवंत में 'विकटापाती' नाम, हरिवर्ष क्षेत्र में 'गन्धापाती' नाम का और रम्यक में 'माल्य' नाम का कहा है । परन्तु जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में तो इस तरह कहा है कि - हैमवंत में शब्दापाती' आया है,हरिवंर्ष में विकटापाती' रम्यक में गन्धापाती और हैरण्यवंत में माल्यवान पर्वत आया है। इस तरह दोनों में अन्तर आता है । सत्य क्या है वह केवली भगवन्त जाने ।' इस तरह हैरण्यवंत क्षेत्र का स्वरूप कहा ।
उदीच्यां हैरण्यवतादपागैखतादपि । षष्टो वर्षधरः ख्यातः शिखरी नाम पर्वतः ॥६६॥
अब शिखरी पर्वत का वर्णन करते है - हैरण्यवंत से उत्तर दिशा में और ऐरवत क्षेत्र से दक्षिण में छठा शिखरी नाम का वर्षधर पर्वत आया है । (६६)
ज्ञेयः शिखरि शब्देन वृक्षस्तदाकृतीनि च ।।
भूयांसि रत्न कूटानि सन्त्यत्रेति शिखर्यसौ ॥६७॥
शिखरी शब्द अर्थ यहां वृक्ष लेना चाहिए, और इस आकार के यहां पुष्कल, (विशाल) रत्नमय शिखर है । इससे यह शिखरी पर्वत कहलाता है । (६७)
सन्त्येकादश कूटानि वक्ष्माणानि यानि तु । तेभ्योऽमूत्यति रिक्तानि कूटानीति विभाव्यताम् ॥१८॥ अन्यथा सर्व शैलानां यथोक्त कूटयोगतः । शिखरित्वव्यपदेशः सम्भवत् केन वार्यते ॥१६॥