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________________ (३७८) अथवा तो वहां पर हिरण्य अर्थात् सुवर्ण की शिलापट्ट (तख्त) होने से वहां के युगलिकों को आसन आदि के लिए यह क्षेत्र दिया हो, इस कारण से यह इसका नाम पड़ा है । (५८) प्रभूतं तन्नित्ययोगि वास्यास्तीति हिरण्यवत् । तदेव है रण्यवतमित्याहु: मुनिसत्तमाः ॥५६॥ अथवा तो इनको नित्य उपयोगी बहुत अधिक वस्तुओं का हिरण्यवत् अर्थात् सुवर्ण वाली होने से मुनिवरों ने यह नाम रखा है । (५६). हैरण्यवत नामा वा देवः पल्योपम स्थितिः । ऐश्वर्य कलयत्यत्र तद्योगात् प्रथितं तथा ॥६०॥ . अथवा तो वहां एक पल्योपम के आयुष्य वाला हैरण्यवंत देव प्रभुत्व भोगता है। इस कारण से यह नाम पड़ गया है । (६०) : : क्षेत्रानुभावों मानं च नृतिरश्चामपि स्थितिः । । निखिलं हैमवतद्वि ज्ञेयमिह धीधनैः ॥६१॥ . इस क्षेत्र का प्रभाव, उसका प्रमाण तथा वहां के मनुष्य और तिर्यंचों की स्थिति इत्यादि सब हैमवत क्षेत्र के समान जानना । (६१) .. क्षेत्रस्यास्य मध्यभागे चतरंशविभाजकः । वैताढयो विकटापाती रालिकः पल्यसंस्थितः ॥६२॥ इस क्षेत्र के मध्यभाग़ में रत्नमय 'विकटापति' वैताढय पर्वत आया है। इसका आकार प्याले के समान है और इससे इस क्षेत्र के चार विभाग पड़े हैं । (६२) पद्मोत्पलशतपत्रादीनि सन्त्यत्र संततम् । विकटापाति वर्णानि विकटापात्ययं ततः ॥६३॥ विकटापाति अर्थात् कभी उड़ न जाय इस तरह पक्के रंग वाले पद्म, उत्पल, तथा शतपत्र आदि वहां हमेशा प्राप्त होते हैं इसलिए विकटापति कहलाता है। (६३) आस्ते देवोऽरूणाख्योऽत्र स्वामी पल्योपम स्थितिः। जम्बू द्वीपेऽन्यत्र नगर्युदीच्यामस्य मेरूतः ॥६४॥ यहां एक पल्योपम आयुष्य वाला, अरूण नाम का देव स्वामित्व भोगता है। इसकी राजधानी का नगर दूसरे जम्बू द्वीप में मेरु पर्वत के उत्तर में है । (६४)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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