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क्र० विषय
सं०
४५६ उसका दृष्टान्त
४६० सर्वत्र चौड़ाई की बढ़त - घटत
जानने का करण
श्लोक
सं०
४६१ उसका दृष्टान्त
४६२ नीचे से ऊपर जाते घेराव का
करण
४६३ उसका दृष्टान्त
४६४ पर्वत की समानता में निर्णायक
अंक कैसे ?
४६५ उसका समाधान
४६६ मेरू पर्वत के तीन कांड़
४६७ प्रथम कांड़ की बनावट ४६८ दूसरे कांड़ की बनावट ४६६ तीसरे कांड़ की बनावट ४७० मेरू के चार बनों के नाम
(xli)
३४
३७
४६
५७
५६
६५
मेरू के प्रथम बन में स्थित प्रासादों तथा गजकूटों के स्थान का नियम
३६ ४८१ उन गजकूटों की लम्बाई आदि ११४ ४८४८२ प्रासादों की लम्बाई आदि
११८
११६
४८३ इन प्रासादों के स्वामियों की आयुः स्थिति
४८४ इन कूटों के स्वामियों की आयुः १२०
स्थिति
६५
६६
६७
७३
७४
४७१ पहले भद्रशाल बन की लम्बाईचौड़ाई
४७२ इसके बन के आठ भाग होने का ७८ कारण तथा भाग के स्थान
४७३ मेरू के चार दिशाओं में चार सिद्धायतन आदि
८३
४७४ उनके स्वरूप आदि
४७५ उसकी चार विदिशा के चार प्रासादों के विषय में
४७६ उन प्रासादों की चार दिशाओं में ८६
चार बावड़ी के विषय में
४७७ उन प्रासादों के स्वामी देव
४७८ इस बन में ८ गजकूट पर्वत तथा उनके नाम ४७६ उन कूटों के स्थान
८४
८५
क्र०
सं०
६२
विषय
४८०
श्लोक
४८५ दूसरे नंदन वन के विषय में
४८६ नंदन वन का स्थान:
४८७ उसका विस्तार तथा मान
४८८ इस स्थान पर मेरू के अभ्यन्तर
घेराव का मान
४८६ इस स्थान पर मेरू के बाह्य
सं०
τη
नाम
६० ४६७ एक दूसरे का अन्तर
१०४
१२४
१२४ :
१२५.
१२७
१३२
घेराव का मान
४६० मेरू की चार दिशाओं में चार सिद्ध मन्दिर
४६१. प्रासादों तथा बावड़ियों की संख्या १३७ ४६२. ईशान कोण की बावड़ियों के १३८ नाम
४६३ अग्नि कोण की बावड़ियों के नाम १३८ ४६४ नैऋत्य कोण की बावड़ियों के १४०
नाम
४६५ वायव्य कोण की बावड़ियों के
१३६
१४१
नाम
४६६ इस वन में स्थित नौ शिखरों के १४४
१४५
४६८ उन शिखरों के स्थान तथा स्वामी १४६ देवों के नाम