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________________ (३७६) इस सरोवर का मुख्य कमल दो योजन का है, इसके पश्चात आस-पास छ: वलय है, जो प्रत्येक कमल का एक के बाद एक वलय के आधे-आधे अनुसार है। अत्राधिष्ठायिका बुद्धैः बोधिता बुद्धिदेवता । भवनादि समृद्धया सा श्रीदेवतानुकारिणी ॥४६॥ इस कमल की अधिष्ठात्री 'बुद्धि' नाम की देवी है इसका भवन आदि समृद्धि लक्ष्मी देवी के अनुसार है । (४६) हृदादस्मादापगे द्वे दक्षिणोदग्मुखे क्रमात् ।। विनिर्गते श्मश्रुलेखे इवोत्तरोष्ठ मध्यतः ॥४७॥ इस सरोवर में से मानो ऊपर के होठ के मध्यभाग से दोनों भाग में मूछ निकलती हो, इस तरह दक्षिण और उत्तर दिशा में बहती हुई नदियां निकलती हैं । दाक्षिणात्यतोरणेन निःसृत्य दाक्षिणामुखी । ... नरकान्ता स्वके कुण्डे स्नात्वेव निर्गता ॥४८॥ रम्यकोदीच्यभागस्य द्वैधीकारभयादिव । अर्वाक् स्थिता योजनेन माल्यवद्धरणीधरात् ॥४६॥ ततो बलित्वा भिन्दाना पूर्वाद्धे रम्यकस्य सा । पूर्वाम्भोधौ याति नदीषट्पंचाशत्सहस्रयुक् ॥५१॥ विशेषकं ॥ इन दो में से एक नरकांता नाम की नदी है, वह इस सरोवर के दक्षिण दिशा के तोरण में से निकलकर दक्षिण तरफ बहती हुई, मानो अपने कुंड में स्नान करके, वहां से बाहर निकलकर रम्यक् क्षेत्र के उत्तरार्द्ध के दो टुकड़े हो जाने के भय से मानो माल्यवान पर्वत से एक योजन दूर से ही मुड़कर, इसी रम्यक् के पूर्वार्ध को दो विभाग में विभाजन करती, मार्ग में छप्पन हजार नदियों को साथ में मिलाती हुई पूर्वसमुद्र में जाकर मिलती है । (४८-५०) औत्तराहतोरणेन विनिर्गत्योत्तरामुखी ।। रूप्यकूला स्वप्रपातकुंडे निपत्य निर्गता ॥५१॥ .. दक्षिणाधंच हैरण्यवतस्य कुर्वती द्विधा । क्रोशद्वयेना संप्राप्ता विकटापातिनं गिरिम् ॥५२॥ ततो निवृत्य हैरण्यवंतस्य कुर्वती द्विधा । अष्टाविंशत्या सहस्रः सरिद्भिराश्रिता पथि ॥५३॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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