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तथा महापुंडरीक हृदेशायाः शुभास्पदम् । बुद्धि देव्या पंचमं परिकीर्तितम् ॥४०॥ रूप्यकूला नदी देव्याः षष्टं कूट तदाख्यया ।
सप्तमं है रण्यवतं हैरण्यवंत दैवतम् ॥४१॥
प्रथम पूर्व समुद्र के नजदीक में सिद्धायतन नाम का शिखर है, दूसरा रूक्मी देव के आश्रय रूप रूक्मी नाम का शिखर है, तीसरा रम्यक् क्षेत्र के स्वामी के आश्रय रूप रम्यक् नाम का शिखर है । चौथा नरकांता देवी के स्थान रूप नरकांता नाम का है, पांचवा महापुंडरीक सरोवर के स्वामी की बुद्धि देवी का आश्रय रूप 'बुद्धि कूट' नाम का शिखर है । छठा रूप्य कूला नदी देवी से अधिष्ठित, 'रूप्य' नाम का शिखर है । सातवा हैरण्यवतं देव का निवास स्थान रूप हैरण्यवतं का शिखर है । (३८ से ४१)
मणिकांचन देवाढयं मणिकांचनमष्टमम् । आये जिनालयोऽन्येषु प्रासादाः स्वामिनाकिनाम् ॥४२॥
और आठवां मणिकांचन देव की स्वामीत्व का मणिकांचन नाम का शिखर है, इसमें सिद्धायतन शिखर पर श्री जिनेश्वर भगवान का चैत्य है और शेष सात पर उनके स्वामी रूप देवों के प्रासाद है । (४२)
मानं स्वरूपं कूटानां चैत्य निर्जरसद्मनाम् । . हिमवद् गिरिवत् सर्वं तथैवास्य गिरेरपि ॥४३॥ .
इस पर्वत का तथा इसके शिखरों का माप, स्वरूप तथा इसके ऊपर आए चैत्य, देव, प्रासाद आदि सर्व स्वरूप हिमवंत पर्वत के अनुसार है । (४३) . . ह दो महापुंडरीको महापद्म हृदोपमः ।
विभाति सलिलैः स्वच्छः निर्जयन् मानसं सरः ॥४४॥ - इस पर्वत के ऊपर महापद्म सरोवर के समान महा पुंडरीक नाम का सरोवर है । मानस सरोवर के जल से भी बढ़ जाय, ऐसा इसका स्वच्छ, निर्मल जल है । (४४)
अस्मिंश्च मूलकमलं योजनद्वय संमितम् । तदर्धा प्रमाणानि शेषाब्जवलयानि षट् ॥४५॥