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________________ (३७२) - दूसरी नारीकांत नदी है, वह उसी सरोवर के उत्तर दिशा के तोरण में से निकल कर उत्तर तरफ बहती हुई, अपने ही नारीकांत प्रपात कुंड में गिरकर, वहां से बाहर निकलकर दक्षिणार्ध रम्यक क्षेत्र को दो विभाग में बांटती (विभाजन करती) माल्यवंत पर्वत के एक योजन दूर उत्तरार्ध रम्यक् क्षेत्र को भी दो विभाग करती, अपने में छप्पन हजार नदियों को मिलाती हुई, पश्चिम समुद्र में मिलती है । (२०-२२) अस्या वार्द्धिप्रवेशान्तं स्वरूपमाहृदोद्गमात् । विज्ञेयं हरिसलिलानद्या इवाविशेषितम् ॥२३॥ सरोवर में से निकलकर समुद्र में मिलने तक, इस नदी का समस्त स्वरूप हरिसलिला नदी अनुसार समझ लेना ( (२३) हृदेऽस्मिन् मूलकमलं चतुर्योजनसंमितम् । ... तदर्थार्धप्रमाणानि पानां वलयानि षट् ॥२४॥ इस सरोवर में मुख्य कमल चार योजन का है - इसके आस-पास दूसरे छः वलय है । इन वलयों के कमलों का माप एक के बाद एक का आधा-आधा होता है । (२४) पल्योपमस्थितिस्तत्र कीर्तिता कीर्तिदेवता । भवनादिस्थितिस्त्वस्याः श्री देव्या इव भाव्यताम् ॥२५॥ इति नीलवान् पर्वतः ॥ मुख्य कमल में पल्योपम के आयुष्यवाली कीर्ति देवी का स्थान है । इस कीर्ति देवी का भवन आदि सारा श्री देवी के समान जानना । (२५) इस तरह नीलवान पर्वत का स्वरूप कहा है। उत्तरस्यां नीलवतो दक्षिणस्यां च रूक्मिणः । राजते रम्यक क्षेत्रं रम्यकामरभर्तृकम् ॥२६॥ इस नीलवान पर्वत के उत्तर में और रुक्मि पर्वत के दक्षिण में, रम्यक् नामक देव का रम्यक् नाम का क्षेत्र है । (२६) स्वर्ण माणिक्यखचितैः भूप्रदेशैः मनोरमैः ।। नाना कल्पद्रुमैः रम्यतयेदं रम्यकाभिधम् ॥२७॥ .
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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