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(३७३) सुवर्णमय और माणेकमय प्रदेश, और विविध जाति के कल्प वृक्षों के कारण से यह क्षेत्र अत्यन्त रम्य अर्थात् रमणीय लगता है । इस कारण इस क्षेत्र का नाम 'रम्यक् ' पड़ा है । (२७)
परमायामरूपाऽस्य प्रत्यंचा हरिवर्षवत् । । किन्त्वत्र सा दक्षिणस्यामुत्तरस्यां शरासनम् ॥२८॥
इसकी उत्कृष्ट लम्बाई रूपी जीवा हरिवर्ष क्षेत्र के अनुसार है । परन्तु वह दक्षिण में है और इससे 'धनु:पृष्ट' उत्तर में है । (२८)
इषुबाहाक्षेत्रफलाद्यपीह हरिवर्षवत् ।
क्षेत्रानुभावकालादिस्वरूपं तद्वदेव च ॥२६॥
इसका शर, बाहा क्षेत्रफल इत्यादि तथा इसका क्षेत्र प्रभाव काल आदि सर्व स्वरूप हरिवर्ष क्षेत्र के अनुसार ही है । (२६)
क्षेत्रस्यास्य मध्यभागे विभाजकोऽर्धयोः द्वयोः । माल्यवानिति विख्यातो वृतवैताढयपर्वतः ॥३०॥
इस क्षेत्र में, क्षेत्र को दो विभाग में बांटने वाला, माल्यवान नाम का गोलाकार वैताढय पर्वत है । (३०) . .
माल्यवत्सद्दशाकारैः तद्वदेवारूणप्रभैः । .. सदा राजन्नुत्पलाद्यैः माल्यवानिति कीर्त्यते ॥३१॥
इसमें माल्यवान के आकार के और इसके समान रक्त प्रभा वाले अतीव सुशोभित कमल आदि होने से यह 'माल्यवान' नाम से प्रसिद्ध है । (३१)
"जम्बूद्वीप प्रज्ञत्तिसूत्रे तु माल्यवत्पर्याय इति नामे दृश्यते ॥" 'जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में तो इसका 'माल्यवत् पर्याय' नाम कहा है।' . प्रभासाख्यसुरस्तत्र स्वामी पल्योपम स्थितिः । मेरोरूत्तरतस्तस्य पुरी नीलवदादि वत् ॥३२॥
इस पर्वत का स्वामी 'प्रभास' नाम का देव है, उसकी एक पल्योपम की आयुष्य है । इसकी राजधानी नीलवान् आदि पर्वतों के समान दूसरे जम्बूद्वीप के मेरू पर्वत की उत्तर दिशा में है । (३२)
हरिवर्षस्थायिगन्धापाति वैताढय शैलवत् । ज्ञेयमस्यापि सकलं स्वरूपम विशेषितम् ॥३३॥