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________________ (३७१) यह कहा है, और अब कहा जायेगा, ये प्रासाद और चैत्यो का समस्त स्वरूप हिमवंत पर्वत के प्रासाद तथा जिन चैत्य के अनुसार है । (१५) अस्योपरि महानेकश्चकास्ति केसरिहूदः । निषधो परिभागस्थातिगिच्छरिवसोदरः ॥१६॥ इस पर्वत पर एक महान तथा सुन्दर केसरी सरोवर नाम का सरोवर है । जो निषध पर्वत के तिंगिछि सरोवर के समान ही है । (१६) अत्यन्त सुन्दराकारके सरा लीपरिष्कृतैः । शोभते शत पत्राद्यैः ख्यातोऽयं केसरी ततः ॥१७॥ अतीव सुन्दर आकृति के केसर वाले संख्या बद्ध शतपत्र-कमल इसके अन्दर होने के कारण, यह केसरी सरोवर नाम से पहिचाना जाता है । (१७) द्वे निम्नगे हृदादस्मानिर्गते कन्यके इव । शीता च नारीकान्ता च दक्षिणोत्तरगे क्रमात् ॥१८॥ इस सरोवर में से कन्या सद्दश, शीता और नारीकान्ता नाम की नदियां निकलती हैं । इसमें शीता दक्षिण की ओर बहती है और नारीकान्ता उत्तर दिशा में बहती है । (१८) दाक्षिणात्यतोरणेन निर्गत्य दक्षिणामुखी । · शीतापूर्व विदेहान्तर्गत्वैति प्राक्पयोनिधिम् ॥१६॥ शीता नदी यह हृद के दक्षिण दिशा के तोरण से निकल कर दक्षिण की ओर बहती हुई, पूर्व विदेह के अन्दर से होती हुई, पूर्व समुद्र में मिलती है । ...विशेषतोऽस्याः स्वरूपं च प्रागुक्तमेव ॥ इस 'शीता' का विशेष समस्त स्वरूप पहले कह गये हैं। उत्तराह तोरणेन विनिर्गत्योत्तरामुखी । नारीकान्ता स्वप्रपातकुंडे निपत्य निर्गता ॥२०॥ • दक्षिणार्द्धरम्यकस्य विदधाना द्विधाखलु । असंप्राप्ता योजनेन माल्यवन्तं नगं ततः ॥२१॥ रम्यकस्यापरभागं द्विधा कृत्वाऽपराम्बुधो । षट् पंचाशच्छैवलिनीसहस्रर्याति संश्रिता ॥२२॥ विशेषकं ॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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