________________
(३७०)
तत्र सिद्धायतनाख्यं समुद्रा सन्नमादिमम् । . द्वितीयं नीलवत्कूटं नीलवत्पर्वतेशितुः ॥७॥ ततः पूर्व विदेहशसुपवैश्चर्यशालितम् । कूटं पूर्व विदेहाख्यं तृतीयं परिकीर्तितम् ॥८॥ शीताकूटं तुरीयं च शीतानदी सूरीश्रितम् । नारीकान्तं पंचमं तन्नारीकान्तासूरीश्रितम् ॥६॥ केसरिहूदवासिन्याः किर्तिदेव्या निकेतनम् । षष्ठं स्पष्ठं जिनप्रष्टैः कीर्तिकूटं प्रकीर्तितम् ॥१०॥ . तथाऽपरविदेहाख्यं कूटं सप्तममीरितम् । सदाऽपरविदेहे शनिर्जरस्थानमुत्तमम् ॥११॥ रम्यक क्षेत्रनाथेन रम्यकाख्यसुधाभुजा ।
अधिष्ठितं यच्छिष्टेष्टैस्तन्निष्टंकितमष्टमम् ॥१२॥ तथा चानवमज्ञानैः कूटं नवममीरितम् । . उपदर्शन संज्ञं तदुपदर्शनदैवतम् ॥१३॥ एषामाद्ये जिनगृहं शेषेषु पुनरष्टसु । तत्तत्कूटसमाख्यानां प्रासादः कूट नाकिनाम् ॥१४॥
इन नौ शिखर में प्रथम समुद्र के नजदीक आया है, उसका नाम सिद्धायतन है । दूसरे पर्वत के नीलवान नाम के स्वामी,का नीलवान नाम का शिखर है। तीसरा पूर्व विदेह के स्वामी का ऋद्धि से समृद्धशाली पूर्व विदेह.नाम का शिखर है। चौथा शीता नदी की अधिष्ठात्री देवी का आश्रय वाला 'शीतकूट' नाम से है। पांचवा नारी कांता देव से अधिष्ठित बना नारी कांत नाम का शिखर है । छठा केसरी सरोवर निवासी कीर्तिदेवी का आश्रय रूप 'कीर्तिकूट' नाम का है । सातवां अपर विदेह के स्वामी का निरन्तर आश्रय रूप 'अपरविदेह' नाम का शिखर है, आठवां रम्यकक्षेत्र के रम्यकनाम के स्वामी से अधिष्ठित रम्यकनाम का शिखर है । अन्तिम नौवा उपदर्शन देव के स्थान रूप'उपदर्शन' नाम का शिखर है । इन नौ में से प्रथम शिखर पर श्री जिनेश्वर भगवान का मंदिर है, शेष आठ शिखरों पर उस उस शिखर के नाम वाले देवताओं के प्रासाद (महल) है । (७-१४)
उक्तवक्ष्यमाणकूट प्रासाद चैत्यगोचरम् । स्वरूपं हिमवत्कूट प्रासाद जिनसद्मवत् ॥१५॥