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उन्नीसवां सर्ग अथो महाविदेहानामुदक् सीमाविधायकः । भूधरो नीलवान्नाम स्याद्वैडूर्य मणीमयः ॥१॥
इसके बाद महाविदेह क्षेत्र के उत्तर दिशा के सीमा पर नीलवान नाम का पर्वत आया है । वह वैडूर्य मणीमय है, उसका वर्णन किया जाता है । (१)
स्वामिनो नीलवान्नाम्नो योगात् पल्योपम स्थितेः । नीलवनित्यसौ ख्यातो यद्वेदं नाम शाश्वतम् ॥२॥
इसका एक पल्योपम के आयुष्य वाला नीलवान नाम का देव स्वामी है । इस कारण से पर्वत का नाम नीलवान कहलाता है । अथवा तो इसका नाम ही शाश्वत कहलाता है । (२) . .
जम्बूद्वीपेऽन्यत्र चास्य मेरोरूत्तरतः पुरी । वक्ष्यमाण सुराणामप्येवं पुर्यायुरादिकम् ॥३॥
इस नीलवान देव की राजधानी दूसरे जम्बूद्वीप में मेरू पर्वत से उत्तर दिशा में है । अब जिसका आगे वर्णन करने में आयेगा, उन देवों की राजधानी तथा आयुष्य आदि के विषय में इस तरह ही समझ देना । (३)
दक्षिणोत्तर विस्तीर्णः स पूर्व पश्चिमा यतः । सर्वमस्य निषधवत् ज्ञेयं धनुः शरादिकम् ॥४॥ किन्तु जीवा दक्षिणस्यामुत्तरस्यां शरासनम् । दक्षिणाभिमुखो बाण एवमग्रेऽपि भाव्यातम् ॥५॥
यह नीलवान पर्वत उत्तर दक्षिण में चौड़ा है । तथा पूर्व पश्चिम में लम्बा है । इसका धनुःपृष्ट और शर आदि सब निषधपर्वत के समान है, परन्तु इसकी 'जीवा' दक्षिणोन्मुखी है, इसका ‘धनुःपृष्ट' उत्तर दिशा में है और इसका 'शर' दक्षिणाभिमुख है । आगे भी इसी तरह समझ लेना । (४-५)
दीप प्रभैरयं कूटैर्नवभिः शोभितोऽभितः । • ब्रह्मवतश्रुतस्कन्ध इव गुप्ति निरूपणैः ॥६॥ . जिस तरह ब्रह्मचर्यव्रत (आचारांग सूत्र) श्रुत स्कंध में नौ गुप्तिका निरूपण करने वाला नौ अध्ययन से शोभायमान है, वैसे ही यह पर्वत भी देदीप्यमान नौ शिखर से चारो तरफ शोभायमान है । (६)