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________________ (३५७) पुष्पोत्तरा, पुष्पवती, सुपुष्पा एवं पुष्पमालिनी नाम की चार वावड़ियां आयी हैं । (२०६) आग्नेय नैर्ऋत्य गतो प्रासादो स्तः शतक्रतोः । वायव्यैशानसत्को तावीशानेन्द्रस्य वर्णितौ ॥२०७॥ अग्निकोण तथा नैऋत्य कोण के दो प्रासाद सौधर्मेन्द्र के हैं और वायव्य कोण तथा ईशान कोण के दो प्रासाद ईशानेन्द्र के है । (२०७) चैत्यप्रासादवापीनां मानंत्रिषु वनेष्वपि । सद्भद्रशाल वनवद्विज्ञेयम विशेषितम् ॥२०॥ भद्रशाल वन में आए चैत्य प्रासाद और वावड़ी इन सबका जो माप आदि योग्य स्थान पर कहने में आया है, वही माप शेष तीनों वन के चैत्य प्रासाद और वावड़ियों का है। अथास्मिन् पंऽकवनेऽभिषेकार्हाः स्वयंभुवाम् । शिलाश्चतस्रः प्रज्ञप्ताः स्नात्रोदकपवित्रिताः ॥२०॥ इस पांडक वन में श्री जिनेश्वर भगवान के अभिषेक के योग्य चार शिलाएं है। वे चारों भगवान के जन्म महोत्सव, समय में स्नात्र जल से पवित्र बनी है । (२०६) आद्या पाण्डु शिलानाम्नी द्वितीया पाण्डु कंबला। . तृतीया च रक्तशिला चतुर्थी रक्त कम्बला ॥२१०॥ इन चार शिलाओं के नाम इस प्रकार हैं - प्रथम पांडुशिला, दूसरी पाण्डु कम्बलो तीसरी रक्तशिला और चौथी रक्त कम्बला । (२१०) ."अमूनि आसां नामनि जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे ॥ क्षेत्र समासे तु पांडु कंबलाअति पाण्डुकंबला,रक्त कंबला अतिरक्त कंबला एवं आसा नामानि पठयन्ते।" __'ये नाम कहे हैं वे जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र के अनुसार हैं । क्षेत्र समास में तो पांडु कंबला, अति पांडु कंबला, रक्त कंबला और अति रक्त कंबला नाम कहे गये प्राच्यां मेरू चूलिकाया प्रापर्यन्ते वनस्य च । भात्यर्जुन स्वर्णमयी शिला पाण्डुशिलाभिधा ॥२११॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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