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________________ (३५४) अन्तर्गिरिपरिक्षेपः सहस्राणि दश त्रयः । शताः चैकोनपंचाशाः त्रयो भागाश्च रूद्रजाः ॥१८॥ इस वन के बाहर का घेराव, तेरह हजार पांच सौ ग्यारह पूर्णांक छ: ग्यारहांश (१३५११-६/११) योजन आता है, और इसके अन्दर का घेरावा दस हजार तीन सौ उनचास पूर्णांक तीन ग्यारहांश (१०३४६-३/११) योजन होता है । (१८४-१८५) एवमुक्ताभिलापेन ज्ञेया वक्तव्यताखिला । . . ... अत्रापि नन्दनाभिख्यवनवत् कूटवर्जिता ॥१८६॥ नंदन वन में कूट-शिखर कहे है, उन कूट सिवाय सब यहां नंदन वन समान समझना चाहिए । (१८६) तथैवैकै कमाशासु विज्ञेयं सिद्धमन्दिरम् । .... विदिक्षु पुनरेकैकः प्रासादो वापिकावृतः ॥१८॥ सुमनाः सौमनसा च शौमनासा मनोरमा । ऐशान्यां विदिशि प्रोक्ताः वाप्यः प्राच्यादिदिक्क्रमात् ॥१८॥ सदुत्तरकुरुः देवकुरुः वन्हिविदिश्यर्थ । वाप्यश्चः क मतो वारिषेणा सरस्वती ॥१८॥ विशाला माघभद्रा चाभयसेना च रोहिणी । वाप्य चतस्रो नैर्ऋत्यां ज्ञेयाः पूर्वाद्यनुक्रमात् ॥१६०॥ भद्रोत्तरा तथा भद्रा सुभद्रा च तथापरा । भद्रावतीति वायव्य कोणे वाप्यो यथा क्रमम् ॥१६॥ इसी ही के समान प्रत्येक दिशा में सिद्धायतन समझना, विदिशा में बावडी से घिरे हुए प्रासाद समझना । ईशान कोण में पूर्वादि केअनुक्रम से सुमना, सौमनसा, सौमनांसा और मनोरमा नाम की वावडियां समझना । अग्नि कोने में उत्तर कुरु, देवकुरु, वारिषेणा और सरस्वती नाम की चार वावडियां है, नैऋत्य कोने में अनुक्रम से विशाला, माघभद्रा, अभयसेना और रोहिणी नाम की चार वावड़ियां है, और वायव्य कोने में अनुक्रम से भद्रोत्तरा, भद्रा, सुभद्रा तथा भद्रावती नाम की चार वावडियां जानना । (१८७-१६१) आग्नेय्यामथ नैर्ऋत्यां प्रासादौ शकभर्तृको । ऐशान्यां वायव्यायां च तावीशानसुरेशितुः ॥१६२॥
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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