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बलनामा सुरस्तत्र स्वामी तद्राजधान्यपि । मेरोरूत्तरपूर्वस्यां जम्बूद्वीपेऽपरे मता ॥१७॥
इस बलकूट पर बल नाम का स्वामी देव रहता है । इसकी राजधानी मेरु पर्वत के उत्तर में अन्य जम्बू द्वीप में है । (१७०) .
बलाख्याया राजधान्याः स्वरूपमखिलं खलु । हरिस्सहायाः सदृशं विज्ञेयमविशेषितम् ॥१७॥
उस राजधानी का नाम 'बला' है और इसकी सर्व बाते हरिस्सहा राजधानी के अनुसार समझना । (१७१)
. गच्छद्भिश्चैत्यनत्यर्थ पाण्डकेऽदो वनं पथि । : विश्रान्त्ये श्रीयते विद्याचारणैः मुनिवारणैः ॥१७२॥ .
इस नन्दन वन, पांडक वन में जिनचैत्यालय की यात्रार्थ जाते समय विद्याचरण मुनियों का विश्राम स्थान है । (१७२)
प्रत्यागच्छदभिरानम्य पाण्डके शाश्वतान् जिनान् । विश्राम्यद्भिः भूष्यतेऽदो जंघा चारण साधुभिः ॥१७३॥
पांडकवन में शाश्वता जिनेश्वर के दर्शन करके वापिस आते जंघा चारण मुनियों को यहां विश्राम लेने का स्थान है । (१७३)
अथास्य नन्दनाभिख्य वनस्य संमभूतलात् । योजनानां सहस्राणि द्वाषष्टिं पंचभिः शतैः ॥१७॥ समन्वितान्यतीत्यास्ति वनं सौमनसाभिधम् । योजनानां पंचशती विस्तीर्णं सर्वतोऽपि तत् ॥१७५॥ युग्मं । ।
इस नन्दन वन के समतल भूमि से बासठ हजार पांच सौ योजन ऊपर जाने के बाद, वहां चारों तरफ से पांच सौ योजन का विस्तार वाला सौमनस नामक वन आता है । (१७४-१७५)
अस्मिन्नपि परिक्षिप्य स्थिस्ते मेरू समन्ततः । वक्ष्ये बाह्यान्तररूपी विष्कम्भौ पूर्ववत् गिरेः ॥१७॥
यह वन भी मेरू पर्वत के चारों तरफ घेराव कर रहा है, और इसका पूर्ववत् बाह्य अभ्यन्तर रूप दो प्रकार का व्यास होता है, वह इस प्रकार से कहा है । (१७६)