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दक्षिणस्यां प्रतीचीनात् सिद्धायतनतस्तथा । प्रासादान्नेत्रंतीनिष्ठादुदीच्यां रजताभिधम् ॥१५४॥ सुवत्सा देवता तत्र प्रतीच्यां कनकाचलात् ।
जम्बूद्वीपेऽन्यत्र तस्या राजधानी निरूपिता ॥१५॥
पांचवा 'रजत' नाम का शिखर है वह पश्चिम दिशा के सिद्ध मंदिर की दक्षिण में और नैऋत्य कोने के प्रासाद की उत्तर में आया है । (१५४) इस शिखर पर सुवत्सा नाम की देवी निवास करती है। इसकी राजधानी भी दूसरे जम्बू द्वीप की पश्चिम में आई है । (१५५)
उत्तरस्यां प्रतीचीनात् सिद्धायतनतस्तथा ।। वायव्यकोणप्रासादादपाच्यां रूचकाभिधम् ॥१६॥ वत्स मित्रा तत्र देवी पश्चिमायां सुमेरूतः । जम्बू द्वीपेऽन्यत्र तस्या राजधानी जिनैः स्मृता ॥१५७॥..
रूचक नाम का छट्ठा शिखर है, वह पश्चिम दिशा के सिद्ध मन्दिर की उत्तर दिशा में और वायव्य कोने के प्रासाद से दक्षिण दिशा में आया है । (१५६) वहां वत्स मित्रा नाम की देवी निवास करती है, उसकी राजधानी भी दूसरे जम्बूद्वीप में मेरु की पश्चिम में आयी है । इस तरह जिनेश्वरों ने कहा है । (१५७)
___ "एवं च जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रवृत्ति-बृहत् क्षेत्र समास सूत्र वृत्ति, सिरि निलय क्षेत्र समास सूत्र वृत्याद्यभिप्रायेण सौमनस गजदन्त सम्बन्धि पंचम कूट षष्ट कूट वासिन्यौ नन्दन वन पंचम कूटषष्ठ कूट वासिन्यौ च दिक्कुमायौँ तुलयाख्ये एव ! स्थानांग सूत्र कल्पान्त र्वाच्यटीका दिषु तु ऊर्ध्व लोक वासि नीषु सुवत्सावत्समित्रा स्थाने तोय धारा विचित्रे दृश्यते ॥" ___'इस तरह जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र की टीका, वृहत्क्षेत्र समास की टीका तथा सिरि निलय क्षेत्र समास की टीका आदि के अभिप्राय में सौमनस और गजदंत पर्वतों के पांचवे और छठे शिखर पर रहने वाली दिक्कुमारियों के और नन्दन वन के पांचवे छठे शिखर पर रहने वाली दिक्कुमारियों के नाम एक समान है, परन्तु स्थानांग सूत्र और कल्प सूत्र की अन्तर र्वाच्य टीका आदि में उर्ध्व लोक वासी दिक्कुमारियों में से 'सुवत्सा' तथा 'वत्समित्रा' के स्थान पर तोयधरा और विचित्रा नाम आए
हैं।'