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________________ (३४७) Tour दूसरा जो मंदर नाम का शिखर है, वह पूर्व तरफ सिद्धायतन और अग्निकोण में आए प्रासाद के बीच में आया है, और वहां मेघवती नाम की देवी रहती है । (१४८) राजधानी पुनरस्या पूर्वस्यां मेरुतो मता । जम्बू द्वीपेऽन्यत्र यथास्थानं विजयदेववत् ॥१४६॥ इस देवी की राजधानी दूसरे जम्बू द्वीप में मेरूपर्वत के पूर्व दिशा में आई है, और इसकी सब बातें सर्व प्रकार से विजयदेव की राजधानी के समान समझना । (१४६) अपाच्य सिद्धायतनाग्नेयी प्रासादयाः किल । अपान्तराले निषधं सुमेघा तत्र देवता ॥१५०॥ मेरोदक्षिणतस्तस्या राजधानी जगुर्बुधाः । सहस्रान् द्वादशातीत्य जम्बूद्वीपेऽपरत्र वैः ॥१५१॥ निषध नाम का तीसरा शिखर दक्षिण दिशा के सिद्धायतन और अग्नि कोने के प्रासाद के बीच में आया है । और वहां सुमेघा नाम की देवी है । (१५०) इस देवी की राजधानी भी दूसरे जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत की.दक्षिण में बारह हजार की दूरी पर आयी है । इस तरह बुद्धिमानों ने कहा है । (१५१) • अपाच्यसिद्धायतनात्प्रतीच्या पूर्वतः पुनः । प्रासादन्नतीनिष्टात् कूटं हैमवतं स्थितम् ॥१५२॥ शोभते स्वामिनी तत्र देवता मेघमालिनी । जम्बू द्वीपेऽन्यत्र तस्या मेरूतो राजधान्यपाक् ॥१५३॥ चौथा हैमवंत नामक शिखर दक्षिण दिशा के सिद्धयतन की पश्चिम में और नैऋत्य कोने के प्रासाद की पूर्व दिशा में आया है । (१५२) इस शिखर पर मेघ मालिनी देवी स्वामी रूप में रहती है । इसकी राजधानी दूसरे जम्बू द्वीप में मेरु पर्वत की दक्षिण दिशा में आयी है । (१५३) ___ "मेघमालिनी स्थाने हेममालिनीति जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्रे" । 'यहां मैने 'मेघमालिनी' नाम कहा है । परन्तु जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में इसके स्थान पर 'हेममालिनी' नाम आया है।'
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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