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________________ (३४५) योजन आता है, यह इस वन में मेरू पर्वत के अंदर का घेरावा है । अब यह वन भी पद्मवेदिका और वन से घिरा हुआ है । (१३२-१३५) और इसी तरह चार वन से घिरा हुआ है। सिद्धायतनमेकै कं पूर्वादिदिक्चतुष्टये ।। सुवर्णशैलतः पंचाशद्योजनव्यतिक मे ॥१३६॥ - मेरू पर्वत से पचास-पचास योजन के अन्तर में पूर्व आदि चार दिशा में एक एक सिद्ध मंदिर है । (१३६) विदिक्षु तावतैवास्मात् प्रासादा भद्रशालवत् । तेषां चतुर्दिशं वाप्यः प्रत्येकमिति षोडश ॥१३७॥ विदशाओं में अर्थात् चारों कोनों में भी मेरू पर्वत से इतने ही अन्तर में भद्रशाल वन में इसी प्रकार प्रासाद है, और प्रत्येक की, चार दिशाओं की कुल मिलाकर सोलह वावडी है । (१३७) नन्दोत्तरा तथा नंदा सुनन्दा वर्धनापि च । ऐशान्यां विदिशि प्राहुर्वापीनामानिसत्तमाः ॥१३८॥ - वे सोलह वावडी इस प्रकार से है - ईशान कोने में नंदोत्तरः, नंदा, सुनंदा और वर्धना इन नाम की चार वांवडी आई है । ऐसा विद्वानों ने कहा है । (१३८) नन्दिषेणा तथाऽमोघा गोस्तूपा च सुदर्शना । आग्नेय्यां विदिशि प्राहुर्वापीनामानि सत्तमाः ॥१३६॥ __ अग्नि कोने में नंदिषेणा, अमोघा, गोस्तूपा और सुर्दशा ये नाम की चार वावडियां विद्वानों ने कही है । (१३६) भद्रा विशाला कुमुदा तथा च पुण्डरीकिणी । .. नैर्ऋत्यां विदिशि पाहुपीनामानि सत्तमाः ॥१४०॥ इसी तरह नैऋत्य कोने में भी भद्रा, विशाला, कुमुदा और पुंडरिकीणी नाम की चार वावड़ियां ज्ञानी पुरुषों ने कहा है । (१४०) विजया वैजयन्ती चापराजिता विजयन्त्य । · वायाव्यां विदिशि प्राहुर्वापीनामानि सत्तमाः ॥१४१॥ .' तथा वायव्य कोने में विजय, वैजयन्ती, अपराजिता और जयन्ती नाम की चार वावडियां ज्ञानी महापुरुषों ने कहा है । (१४१)
SR No.002272
Book TitleLokprakash Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages572
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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